Lawlesh Gautam blog

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Sunday, November 5, 2023

November 05, 2023

काल गणना और ब्रह्मा जी की आयु

 समय तथा संसार की उत्पत्ति के विषय में

भी विभिन्न धारणायें है यथा स्टीफन

हॉकिंग ने ‘द बिगिनिंग ऑफ़ टाइम’ में कहा है-यह ब्रह्माण्ड

हमेशा से नहीं है। इस ब्रह्माण्ड तथा काल

की उत्पत्ति 15 बिलियन साल पहले बिग बैंग से

हुई। अतः बिग बैंग से पहले काल था या नही यह

एक अर्थहीन प्रश्न है क्योंकि जो भौतिक

वैज्ञानिकों के लिये अपरिमेय है वह आस्तित्व में

नहीं है। परंतु आईंस्टिन ने कहा कि जो समय हम

भौतिक वैज्ञानिकों के लिए अपरिमेय है वह हमारे लिये

उपयोगी नहीं है । आधुनिक वैज्ञानिक

यह मानते है कि बिंग बैंग से ही सृष्टि तथा समय

की उत्पत्ति हुई परंतु उससे पहले समय

था या नही इसके बारे में कुछ निश्चित रूप से कहने

की स्थिति में नही है । परंतु भागवत

महापुराण में इसे इस तरह कहा गया है -

अहमेवासमेवाग्रे नान्यद् यत् सदसत् परम् ।

पश्चादहं यदेतच्च यो अवशिष्येत् सो अस्म्येहम् ।।

सृष्टि के पूर्व केवल मैं-ही-मैं था । मेरे अतिरिक्त न

स्थूल था न सूक्ष्म और न दोनों का कारण अज्ञान था ।

जहाँ यह सृष्टि नहीं है, वहाँ मैं-

ही-मैं हूँ और इस सृष्टि के रूप में जो कुछ

प्रतीत हो रहा है वह भी मैं हूँ और

जो कुछ बचा रहेगा, वह भी मैं ही हूँ

ऋग्वेद की ऋचायें

भी यही संकेत करती हैं -

हिरण्य गर्भः समवर्तताग्रे भूतस्य जातः पतिरेक

आसीत् ।

सदाधार पृथ्वीम् द्यामुतेमाम् कस्मै देवाय हविषा विधेम्

।।

(ऋग्वेद अध्याय 8)

अर्थात् जो परमेश्वर सृष्टि से पहले ही था, जो इस

जगत का स्वामी है

वही पृथ्वी से लेकर सूर्यपर्यन्त

सभी जगत को रचकर धारण कर रहा है । इसलिए

उसी सुख स्वरूप परमेश्वर

की ही हम उपासना करें अन्य

की नहीं ।

सारांशतः सर्वातीत एवं सर्वस्वरूप भगवान

ही सर्वदा और सर्वत्र स्थित है वे

ही वास्तविक तत्व हैं ।

जब हम अपने को समय से ऊपर उठकर देखते हैं तो हमें

मस्तिष्क की चेतना के अतिरिक्त कुछ

नहीं दिखाई देता तब हमारा व्यक्तित्व अलग तरह

का हो जाता है -हम विचार या अनुभूति हो जाते हैं ।

ऐसी कल्पना तभी हो सकती

है जब हम विचार और केवल विचार ही हो जायें ।

अर्थात् गीता के ‘ आत्मन्येवात्मना तुष्टः’ अपने आप

से आप में ही संतुष्ट हो जायें अर्थात् स्थितप्रज्ञ

हो जायें । मूलतः काल तो सर्वथा अविभाज्य सूक्ष्म तत्व है,

अमूर्त होता है । परंतु व्यवहार की सिद्धि के लिये

काल का विभाजन किया जाता है । एक सूर्योदय से दूसरे सूर्योदय

तक के काल से मनुष्य के अहोरात्र (दिन-रात) का निर्धारण

होता है । इसी अहोरात्र का सूक्ष्मतम विभाजन

करके काल-गणना का श्रीगणेश होता है। पुराणों के

आधार पर मनुष्य के एक अहोरात्र को सूक्ष्मातिसूक्ष्म अंशों में

विभाजित करने का क्रम बड़ा ही वैज्ञानिक है ।

श्रीमद्भागवत में बताया गया है कि दो परमाणु

(समवाय-सम्बन्ध से) संयुक्त होकर एक ‘अणु’ होता है और

तीन अणुओं के मिलने से एक ‘त्रसरेणु’ बनता है,

जिसे झरोखे में से होकर आयी हुई सूर्य

की किरणों के प्रकाश के माध्यम से आकाश में उड़ते

हुए देखा जा सकता है । ऐसे तीन त्रसरेणुओं

को पार करने में सूर्य की किरणों को जितना समय

लगता है, उसे ‘त्रुटि’ कहते हैं । इससे सौ गुना काल ‘वेध’

कहलाता है । और तीन ‘वेध’ का एक‘लव’

होता है । तीन ‘लव’ को एक ‘निमेश’ और

तीन निमेश को एक ‘क्षण कहता हैं । इसे इस

प्रकार व्यक्त किया जा सकता है -

1 त्रुटि - 3 त्रसरेणुओं को पार करने में सूर्य

कहलाता है । और तीन ‘वेध’ का एक‘लव’

होता है । तीन ‘लव’ को एक ‘निमेश’ और

तीन निमेश को एक ‘क्षण कहता हैं । इसे इस

प्रकार व्यक्त किया जा सकता है -

1 त्रुटि - 3 त्रसरेणुओं को पार करने में सूर्य

की किरणों द्वारा लिया गया समय

100 त्रुटि -

1 वेध

3 वेध - 1

लव

3 लव - 1

निमेष

3 निमेष - 1

क्षण

15 निमेष -

1 काष्ठा

30 काष्ठा -

1 कला

15 कला -

1 नाडिका

30 कला -

1 मुहूर्त

(2 नाडिका)

(कहीं कहीं 30.3 कला = 1 मुहूर्त)

30 मुहूर्त - 1 दिन-रात

30 दिन-रात - 1 मास

2 मास - 1 ऋतु

3 ऋतु - 1 अयन

2 अयन - 1 वर्ष

24 घंटा = 30 x30.3x 30x15 निमेश = 86,400 सेकेण्ड

1 निमेश =0.21122112211 सेकेण्ड

ऐसे 100 वर्षों को मनुष्य की परमायु बताया गया है.

मनुष्यों के मानसे जो एक वर्ष है, वह देवताओं का एक

अहोरात्र (दिन-रात) है । उत्तरायण देवताओं का दिन है और

दक्षिणायन देवताओं की रात्रि । तात्पर्य यह है

कि मकर-संक्रान्ति से मिथुन-संक्रान्ति के अन्त तक सूर्य के रथ

की किरणों और अक्षांश की किरणों के

प्रतिदिन ध्रुव की ओर खिंचते रहने से उत्तर

की ओर चलने वाला सूर्य मेरूपर्वत के शिखर पर

रहने वाले देवताओं को दिखता रहता है, अतः उत्तरायण देवताओं

का दिन होता है तथा कर्क-संक्रान्ति से धनु-संक्रांति के अंत तक

उन दोनों प्रकार की किरणों के ध्रुव को प्रतिदिन

क्रमशः छोडते रहने से दक्षिण की ओर चलता हुआ

सूर्य देवताओं को नहीं दिखता, अतएव दक्षिणायन

देवताओं की रात है । इस प्रकार तीन

सौ साठ मानवी वर्ष का एक दिव्य वर्ष अर्थात्

देवताओं के एक वर्ष के बराबर होते हैं । मानवीमान

से बारह मास का एक वर्ष होता है, देवलोक में

यही एक दिन-रात होता है । ऐसे तीन

सौ साठ वर्षों का देवताओं का एक वर्ष होता है-

दिव्य वर्षों एवं मानुष वर्षों में एक चतुर्युग का मान

सत्ययुग, त्रेता, द्वापर और कलियुग से मिलकर एक चतुर्युग

बनता है । बारह हजार दिव्य वर्षों का एक चतर्युग होता है ।

इसको मानुष वर्ष बनाने के लिये तीन सौ साठ

का गुणा करना पड़ेगा जिससे यह निष्कर्ष निकलता है कि एक

चतुर्युग में तैंतालिस लाख बीस हजार मानुष वर्ष

होते हैं । इसे इस प्रकार व्यक्त किया जा सकता है-


ब्रह्मा जी की आयु

पुराणों के अनुसार ब्रह्मा के एक दिन में एक हजार चतुर्युग

होते हैं, जिनका सम्पूर्ण मान एक कल्प कहलाता हैं

इतनी ही बड़ी अर्थात् एक

हजार चतुर्युगियों की ब्रह्मा की एक

रात्रि भी होती है । कल्पका क्रम तब

तक चलता रहता है, जबतक ब्रह्मा का दिन रहता हैं

त्रिलोकी से बाहर मर्हलोक से ब्रह्मलोकपर्यन्त

यहाँ की एक सहस्त्र चतुर्युगी का एक

दिन होता है और

इतनी ही बड़ी रात्रि होत

ी है, जिसमें जगत्कर्ता ब्रह्मा शयन करते हैं ।

उस रात्रि का अन्त होने पर इस लोक का कल्प आरम्भ होता है,

उसका क्रम जबतक ब्रह्मा का दिन रहता है, तबतक

चलता रहता है । उस एक कल्प में चौदह मनु हो जाते हैं ।

प्रत्येक मनु इकहत्तर चतुर्युगी से कुछ अधिक

काल (71-6/14 चतुर्युगी) तक अपना अधिकार

भोगता है ।

उक्त मानसे ब्रह्मा की परमायु उनके कालमान से

सौ वर्ष होगी । इस आधार पर ब्रह्मवर्ष

गणना को यूं चरणबद्ध लिखा जा सकता है.

इस समय ब्रह्मा जी अपनी आयु

का आधा भाग अर्थात् 1 परार्ध (50 वर्ष) बिताकर दूसरे परार्ध में

चल रहे हैं। यह उनके 51वें वर्श का प्रथम दिन या कल्प है

। ब्रह्मा के प्रथम परार्ध में

कल्पों की गणना रथन्तर कल्प से

होती है, परंतु ब्रह्मा के द्वितीय

परार्ध के आदि का कल्प श्वेत्वराह्कल्प होता है ।

अतः वर्तमान कल्प को श्वेत्वराह्कल्प कहा जाता है यह

द्वितीय परार्ध का प्रथम कल्प है । इस कल्प के

चौदह मन्वन्तरों में 6 मन्वन्तर व्यतीत हो चुके हैं

। वर्तमान में सप्तम वैवस्वत मन्वन्तर के 27 चतुर्युग

बीत चुके है और 28वें महायुग के सत्य, त्रेता,

द्वापर बीतकर 28वां कलियुग चल रहा है ।

इन मन्वन्तरों का समय बीत जाने पर सृष्टि में प्रलय

होता है, जो अवान्तर या पार्थिव प्रलय कहलाता है ।

चौदहों मन्वतन्तरों का पूर्ण समय एक कल्प के बराबर होता है

। इस कल्प के अन्त में होने वाला प्रलय नैमित्तिक, दैनन्दिन

या कल्प-प्रलय कहलाता है । ब्रह्मा की आयु के

दोनों परार्धों की समाप्ति पर प्राकृतिक महाप्रलय

होता है, जिसमें सृष्टिकर्ता ब्रह्मा का लय होता है । तदनन्तर

समस्त ब्रहमाण्ड का पूर्ण ब्रह्म परमात्मा में लय होता है,

जो आत्यन्तिक प्रलय कहलाता है । पुनः काल, कर्म और

स्वभाव से उस निराकार से साकार

सृष्टि की उत्पत्ति होती है ।

यही सृष्टि और प्रलय का क्रम अनादिकाल से

चला आ रहा है ।

काल की आधुनिक इकाई

पॉप ग्रेगरी XIII ने सन् 1582 में सोलर कलैण्डर

को लागू किया और इसे पूरे संसार में मान्यता मिली ।

यह सबसे ज्यादा प्रचलित कलैण्डर है । आधुनिक समय में

काल की सबसे छोटी इकाई ‘प्लांक टाइम’

माना जाता है इसके अनुसार सूर्य की किरणों को ‘एक

प्लांक दूरी’ पार करने में जो समय लगता है उसे

प्लांक टाइम माना जाता है । 1 प्लांक दूरी =

1.616199x10-35 मीटर । आधुनिक समय

की सूक्ष्म से सूक्ष्म तथा वृहत्तर काल

गणना का परिमाण निम्न प्रकार है:

पुराणोक्त तथा आधुनिक काल गणना विज्ञान पर विचार करने से

पता चलता है कि पुराणोक्त काल गणना विज्ञान का सूक्ष्मतम

काल ‘त्रुटि’ है जो 0.00023469013 सेकेन्ड के बराबर

होता है तथा महत्तम काल =

ब्रह्मा जी की परमायु = 1 पर

=31,10,40,00,00,00,000 मानवी वर्ष है ।

इसके बाद प्राकृतिक महाप्रलय होता है जिसमें

ब्रह्मा जी का भी लय हो जाता है

तथा समस्त ब्रह्माण्ड का भी पूर्ण परब्रह्म

परमात्मा में लय होता है जो आत्यन्तिक प्रलय कहलाता है ।

सभी साकार सृष्टि का निराकार में लय हो जाता है ।

परंतु

ब्रह्मा जी की रात्रि बीतने

पर फिर इस मानव लोक का अगला कल्प शुरू होता है । नये

ब्रह्मा आते है नये मन्वन्तर आते हैं इसका विषद वर्णन

हरिवंश पुराण में भी दिया गया है । अतः पुराणोक्त

काल विज्ञान में काल

की अवधारणा चक्रीय है क्योंकि जिस

तरह से 1 दिन-रात में सूर्य के उदय या अस्त

की पुनरावृत्ति होती है

उसी तरह 1 महीने, 1 साल में

भी होता है और 1 युग, 1 चतुर्युग

तथा ब्रह्मा जी की परमायु के बाद

भी मानी गई है । परंतु आधुनिक काल

गणना विज्ञान में इस तरह की पुनरावृत्ति का अभाव

है । आधुनिक काल-गणना विज्ञान के अनुसार 1 प्लांक समय

=5.39 x 10-44 सेकण्ड को सूक्ष्मतम समय माना गया है

परंतु महत्तम काल अर्थात् इस सृष्टि के अन्तिम समय के बारे में

कुछ गणना कर नहीं बताया गया है ।

सृष्टि का आरंभ तो बिग बैंग अर्थात् 15 बिलियन साल पहले

माना गया है परंतु अंत होने के समय के बारे में कुछ

नहीं बताया गया है तथा इसमें काल

की अवधारणा चक्रीय

नही अपितु रेखीय ही है

। इसमें बिग बैंग से पहले काल का स्वरूप क्या था तथा सृष्टि के

अन्त के बाद क्या होगा इसके बारे में कोई निश्चित

अवधारणा नही है । परंतु पौराणिक काल

गणना विज्ञान के अनुसार आत्यंतिक प्रलय के बाद नई

सृष्टि की बात कही गई है तथा इसके

पुनरावृत्ति की बात कहकर यह संकेत दिया गया है

कि जिस तरह सब कुछ ब्रह्म से ही उत्पन्न

हुआ है तथा ब्रह्म में ही लय होगा तो समय

या काल भी ब्रह्म से ही उत्पन्न

हुआ है तथा ब्रह्म में ही लय होगा । अतः काल

का भी आदि और अन्त नही है अर्थात्

यह अनादि तथा अनन्त है क्योंकि चक्र में

किसी बिन्दु को न तो आदि माना जा सकता है और न

तो अन्त । यह चक्र अनवरत चलता रहेगा । अर्थात् सृष्टि के

पहले भी ब्रह्म है सृष्टि में

भी ब्रह्म है इसके बाद भी ब्रह्म

ही रहेगा ।


November 05, 2023

Mahatma Gandhi best quote

 "When doubts haunt me, when disappointments

stare me in the face, and I see not one ray of

hope on the horizon, I turn to Bhagavad Gita and

find a verse to comfort me; and I immediately

begin to smile in the midst of overwhelming

sorrow. Those who meditate on the Gita will

derive fresh joy and new meanings from it every

day.".

.................. Mahatma Gandhi

November 05, 2023

सुभाषित

 कन्या वरयते रुपं, माता वित्तं पिता श्रुतम् 

बान्धवा:  कुलमिच्छन्ति मिष्टान्नमितरेजना: ।।

विवाह के समय

कन्या सुन्दर पती चाहती है|

उसकी माताजी धनवान जमाइ

चाहती है| उसके

पिताजी ज्ञानी जमाइ चाहते है|

तथा उसके

बन्धु अच्छे परिवार से नाता जोडना चाहते है| परन्तु

बाकी सभी लोग केवल

अच्छा खाना चाहते है|

November 05, 2023

तप के प्रकार (भगवदगीता)

जीवन का तप मात्र वन में जाकर ध्यान समाधि लगाने

से ही नहीं होता है।

जीवन के प्रत्येक आश्रम (ब्रह्मचर्य, गृहस्थ,

वानप्रस्थ व सन्यास) में तप किया जा सकता है। धर्म के बताये

मार्ग पर चलते रहकर दृढ अनुशासन से हमेशा कठिन प्रयत्न

करते रहना भी तप है। तप से व्यक्ति में विशेष

उत्साह और शक्तियां आती हैं। इनका पालन करने

से तपोबल आता है, जो कठिन लक्ष्यों को भी अपने

प्रभाव से आसान बना देता है।

भगवान् कृष्ण ने गीता में अपने अनमोल वचनों में तप

के विभिन्न प्रकार बताये हैं -- शरीर-

संबंधी तप, वाणी-संबंधी तप

और मन-संबंधी तप ।

१. देवद्विजगुरुप्राज्ञपूजनं शौचमार्जवम्। ब्रह्मचर्यमहिंसा च

शारीरं तप उच्यते॥ (गीता १७/१४)

देव, विप्र, गुरु और ज्ञानीजनों का पूजन, पवित्रता,

सरलता, ब्रह्मचर्य और अहिंसा -- यह शरीर-

संबंधी तप कहलाते हैं।

२. अनुद्वेगकरं वाक्यं सत्यं प्रियहितं च यत्। स्वाध्यायाभ्यसनं

चैव वाङ्मयं तप उच्यते॥ (गीता १७/१५)

उद्वेग (क्षोभ) न पैदा करने वाला, सत्य, प्रिय और यथार्थ बोलना,

वेद-शास्त्रों को पढना और परमात्मा का नाम जपना -- यह

वाणी-संबंधी तप कहलाते हैं।

३. मनःप्रसादः सौम्यत्वं मौनमात्मविनिग्रहः। भावसंशुद्धिरित्

येतत्तपो मानसमुच्यते॥

(गीता १७/१६)

मन की प्रसन्नता, शांतभाव, भगवान् का चिंतन करते

हुए कर्म करना, मन पर नियंत्रण और अंतःकरण

की पवित्रता -- यह मन-संबंधी तप

कहलाते हैं।

November 05, 2023

महर्षि अत्रि मुनि कृत श्री राम स्तुति


श्री गोस्वामी तुलसीदास

विरचित-

“अत्रिमुनि द्वारा श्रीराम

स्तुति"

का नित्य पाठ करें.

जीवन में

जिनको सर्वोच्च आसन पर जाने

की कामना हो, वे इस स्तोत्र

को भगवान् श्रीराम /

रामायणी हनुमान के चित्र

या मूर्ति के समक्ष बैठकर

नित्य पढ़ें।

।।श्रीअत्रि-मुनिरूवाच।।

नमामि भक्त-वत्सलं, कृपालु-

शील-कोमलम्।

भजामि ते पदाम्बुजं,

अकामिनां स्व-धामदम्।।1ll

निकाम-श्याम-सुन्दरं, भवाम्बु-

नाथ मन्दरम्।

प्रफुल्ल-कंज-लोचनं, मदादि-

दोष-मोचनम्।।2ll

प्रलम्ब-बाहु-विक्रमं,

प्रभो·प्रमेय-वैभवम्।

निषंग-चाप-सायकं, धरं त्रिलोक-

नायकम्।।3ll

दिनेश-वंश-मण्डनम्, महेश-चाप-

खण्डनम्।

मुनीन्द्र-सन्त-रंजनम्,

सुरारि-वृन्द-भंजनम्।।4ll

मनोज-वैरि-वन्दितं, अजादि-देव-

सेवितम्।

विशुद्ध-बोध-विग्रहं, समस्त-

दूषणापहम्।।5ll

नमामि इन्दिरा-पतिं, सुखाकरं

सतां गतिम्।

भजे स-शक्ति सानुजं, शची-पति-

प्रियानुजम्।।6ll

त्वदंघ्रि-मूलं ये नरा:,

भजन्ति हीन-मत्सरा:।

पतन्ति नो भवार्णवे, वितर्क-

वीचि-संकुले।।7ll

विविक्त-वासिन: सदा,

भजन्ति मुक्तये मुदा।

निरस्य इन्द्रियादिकं,

प्रयान्ति ते गतिं स्वकम्।।8ll

तमेकमद्भुतं प्रभुं,

निरीहमीश्वरं विभुम्।

जगद्-गुरूं च शाश्वतं,

तुरीयमेव केवलम्।।9ll

भजामि भाव-वल्लभं, कु-

योगिनां सु-दुलर्भम्।

स्वभक्त-कल्प-पादपं, समं सु-

सेव्यमन्हवम्।।10ll

अनूप-रूप-भूपतिं,

नतोऽहमुर्विजा-पतिम्।

प्रसीद मे नमामि ते, पदाब्ज-

भक्तिं देहि मे।।11ll

पठन्ति से स्तवं इदं,

नराऽऽदरेण ते पदम्।

व्रजन्ति नात्र संशयं, त्वदीय-

भक्ति-संयुता:।।12 ll

November 05, 2023

मानस, मंत्रों और सिद्ध स्तोत्रों के अनुभूत प्रयोग

 गोस्वामी श्री तुलसी दास

जी ने श्री राम चरित मानस

की रचना के समस्त मानव जाति पर जो उपकार किया उसे

कभी भुलाया नहीं जा सकता है.भक्ति

का मार्ग दिखाया, परिवार में रहने का आदर्श बताया,समाज के

प्रत्येक सम्बन्ध का निर्वाह करने का सुगम व सरल मार्ग

बताया कि पिता-पुत्र,पति-पत्नी,स्वामी-

सेवक,भाई-भाई आदि समस्त रिश्तों की व्याख्या कर

समाज को यह निर्देश दिया कि यदि समाज श्री राम के

चरित के अनुसार जीवन यापन अर्थात मानस

को श्री राम के चरित के अनुसार रिश्तों का पालन

करता है तो उसे समाज में

किसी भी प्रकार का कष्ट

नहीं होगा. तथा भक्ति मार्ग द्वारा यह निर्देश

दिए मानस की प्रत्येक चौपाई,दोहा,सोरठा छंद

सभी अपने आप में मन्त्र का रूप है

जो कि कभी कीलित

नहीं है अन्य मंत्रो में कीलन

आदि कई प्रकार के शाप आदि बाधाए है लेकिन

श्री राम चरित मानस में सरल भाषा का प्रयोग कर

हम अपने जीवन का अभाव

की पूर्ति कर सकने में समर्थ होते है

श्री राम चरित मानस में वर्णित मन्त्र आज लिख

रहा हूं......

ऐश्वर्य प्राप्त करने के लिए

‘माता सीता की स्तुति’ का नित्य प्रातःकाल

सूर्योदय के समय श्री राम जी के चित्र के

सामने लाल पुष्प रख कर श्रद्धा-विश्वासपूर्वक पाठ करें।

“उद्भवस्थितिसंहारकारिणीं

क्लेशहारिणीम्।

सर्वश्रेयस्करीं सीतां नतोऽहं

रामवल्लभाम्।।”

दुःख का नाश करने के लिए स्तुति

यह श्लोक श्री राम जी को हाथ जोड़

कर तथा सिर पर पीला वस्त्र धारण कर के करने से

समस्त दुखों का नाश होता है.

“यन्मायावशवर्तिं विश्वमखिलं ब्रह्मादिदेवासुरा

यत्सत्वादमृषैव भाति सकलं रज्जौ यथाहेर्भ्रमः।

यत्पादप्लवमेकमेव हि भवाम्भोधेस्तितीर्षावतां

वन्देऽहं तमशेषकारणपरं रामाख्यमीशं हरिम्।।”

“ यस्याङ्के च विभाति भूधरसुता देवापगा मस्तके

भाले बालविधुर्गले च गरलं यस्योरसि व्यालराट ,

सोऽयं भूतिविभूषणः सुरवरः सर्वाधिपः सर्वदा शर्वः

सर्वगतः शिवः शशिनिभः श्रीशङ्करः पातु माम ||”

अपने पारिवारिक जीवन को सुखमय बनाने के लिए

श्रीसीता जी तथा

श्री राम जी का भाव पूर्ण नित्य पाठ करें।

“नीलाम्बुजश्यामलकोमलाङ्गं

सीतासमारोपितवामभागम,

पाणौ महासायकचारुचापं नमामि रामं रघुवंशनाथम ||”

अपने व अपने परिवार की उन्नति तथा घर में सुख

सम्पदा प्राप्त करने हेतु

श्री अत्रि मुनि द्वारा रचित ‘श्रीराम-स्तुति’

का नित्य प्रातः व सायकाल दीप जला कर पाठ करें।

“नमामि भक्त वत्सलं । कृपालु शील कोमलं ॥

भजामि ते पदांबुजं । अकामिनां स्वधामदं ॥

निकाम श्याम सुंदरं । भवाम्बुनाथ मंदरं ॥

प्रफुल्ल कंज लोचनं । मदादि दोष मोचनं ॥

प्रलंब बाहु विक्रमं । प्रभोऽप्रमेय वैभवं ॥

निषंग चाप सायकं । धरं त्रिलोक नायकं ॥

दिनेश वंश मंडनं । महेश चाप खंडनं ॥

मुनींद्र संत रंजनं । सुरारि वृंद भंजनं ॥

मनोज वैरि वंदितं । अजादि देव सेवितं ॥

विशुद्ध बोध विग्रहं । समस्त दूषणापहं ॥

नमामि इंदिरा पतिं । सुखाकरं सतां गतिं ॥

भजे सशक्ति सानुजं । शची पतिं प्रियानुजं ॥

त्वदंघ्रि मूल ये नराः । भजंति हीन मत्सरा ॥

पतंति नो भवार्णवे । वितर्क वीचि संकुले ॥

विविक्त वासिनः सदा । भजंति मुक्तये मुदा ॥

निरस्य इंद्रियादिकं । प्रयांति ते गतिं स्वकं ॥

तमेकमभ्दुतं प्रभुं । निरीहमीश्वरं विभुं

जगद्गुरुं च शाश्वतं । तुरीयमेव केवलं ॥

भजामि भाव वल्लभं । कुयोगिनां सुदुर्लभं ॥

स्वभक्त कल्प पादपं । समं सुसेव्यमन्वहं ॥

अनूप रूप भूपतिं । नतोऽहमुर्विजा पतिं ॥

प्रसीद मे नमामि ते । पदाब्ज भक्ति देहि मे ॥

पठंति ये स्तवं इदं । नरादरेण ते पदं ॥

व्रजंति नात्र संशयं । त्वदीय भक्ति संयुता ॥”

शत्रुओं तथा अपने प्रतिद्वंद्वी को परास्त करने

हेतु

“श्याम तामरस दाम शरीरं । जटा मुकुट परिधन

मुनिचीरं ॥

पाणि चाप शर कटि तूणीरं । नौमि निरंतर

श्रीरघुवीरं ॥१॥

मोह विपिन घन दहन कृशानुः । संत सरोरुह कानन भानुः ॥

निशिचर करि वरूथ मृगराजः । त्रातु सदा नो भव खग बाजः ॥२॥

अरुण नयन राजीव सुवेशं । सीता नयन

चकोर निशेशं ॥

हर ह्रदि मानस बाल मरालं । नौमि राम उर बाहु विशालं ॥३॥

संशय सर्प ग्रसन उरगादः । शमन सुकर्कश तर्क विषादः ॥

भव भंजन रंजन सुर यूथः । त्रातु सदा नो कृपा वरूथः ॥४॥

निर्गुण सगुण विषम सम रूपं । ज्ञान गिरा गोतीतमनूपं

अमलमखिलमनवद्यमपारं । नौमि राम भंजन महि भारं ॥५॥

भक्त कल्पपादप आरामः । तर्जन क्रोध लोभ मद कामः ॥

अति नागर भव सागर सेतुः । त्रातु सदा दिनकर कुल केतुः ॥६॥

अतुलित भुज प्रताप बल धामः । कलि मल विपुल विभंजन नामः ॥

धर्म वर्म नर्मद गुण ग्रामः । संतत शं तनोतु मम रामः ॥७॥”

or-bidi� k o : � j �Dg �िविक्त वासिनः सदा ।

भजंति मुक्तये मुदा ॥

निरस्य इंद्रियादिकं । प्रयांति ते गतिं स्वकं ॥

तमेकमभ्दुतं प्रभुं । निरीहमीश्वरं विभुं

जगद्गुरुं च शाश्वतं । तुरीयमेव केवलं ॥

भजामि भाव वल्लभं । कुयोगिनां सुदुर्लभं ॥

स्वभक्त कल्प पादपं । समं सुसेव्यमन्वहं ॥

अनूप रूप भूपतिं । नतोऽहमुर्विजा पतिं ॥

प्रसीद मे नमामि ते । पदाब्ज भक्ति देहि मे ॥

पठंति ये स्तवं इदं । नरादरेण ते पदं ॥

व्रजंति नात्र संशयं । त्वदीय भक्ति संयुता ॥”

सर्व सिद्धि हेतु

“अतुलितबलधामं हेमशैलाभदेहं

दनुजवनकृशानुं ज्ञानिनामग्रगण्यम् ।

सकलगुणनिधानं वानराणामधीशं

रघुपतिप्रियभक्तं वातजातं नमामि।।”

समस्त प्रकार की बाधाए,कष्ट, कर्जा, रोग

तथा मानसिक पीड़ा को दूर करने हेतु

॥ श्रीरुद्राष्टकम् ॥


नमामीशमीशान निर्वाणरूपं विभुं व्यापकं


ब्रह्मवेदस्वरूपम् ।


निजं निर्गुणं निर्विकल्पं निरीहं चिदाकाशमाकाशवासं


भजेऽहम् ॥ १॥


निराकारमोंकारमूलं तुरीयं गिरा ज्ञान


गोतीतमीशं गिरीशम् ।


करालं महाकाल कालं कृपालं गुणागार संसारपारं नतोऽहम् ॥ २॥


तुषाराद्रि संकाश गौरं गभीरं मनोभूत


कोटिप्रभा श्री शरीरम् ।


स्फुरन्मौलि कल्लोलिनी चारु गङ्गा लसद्भालबालेन्दु


कण्ठे भुजङ्गा ॥ ३॥


चलत्कुण्डलं भ्रू सुनेत्रं विशालं प्रसन्नाननं


नीलकण्ठं दयालम् ।


मृगाधीशचर्माम्बरं मुण्डमालं प्रियं शंकरं सर्वनाथं


भजामि ॥ ४॥


प्रचण्डं प्रकृष्टं प्रगल्भं परेशं अखण्डं अजं भानुकोटिप्रकाशम् ।


त्रयः शूल निर्मूलनं शूलपाणिं भजेऽहं


भवानीपतिं भावगम्यम् ॥ ५॥


कलातीत कल्याण


कल्पान्तकारी सदा सज्जनानन्ददाता पुरारी ।


चिदानन्द संदोह मोहापहारी प्रसीद


प्रसीद प्रभो मन्मथारी ॥ ६॥


न यावत् उमानाथ पादारविन्दं भजन्तीह लोके परे


वा नराणाम् ।


न तावत् सुखं शान्ति सन्तापनाशं प्रसीद


प्रभो सर्वभूताधिवासम् ॥ ७॥


न जानामि योगं जपं नैव पूजां नतोऽहं सदा सर्वदा शम्भु तुभ्यम् ।


जरा जन्म दुःखौघ तातप्यमानं


प्रभो पाहि आपन्नमामीश शम्भो ॥ ८॥


रुद्राष्टकमिदं प्रोक्तं विप्रेण हरतोषये ।


ये पठन्ति नरा भक्त्या तेषां शम्भुः प्रसीदति ॥


जितने भी मन्त्र है श्रद्धा अनुसार सामने फल


पुष्प तथा मिष्ठान आदि रख कर करें पाठ के उपरान्त यह भोग


परिवार के सभी सदस्यों को वितरण कर देने से


सभी की कामनाये पूर्ण


होगी.......

November 05, 2023

भगवद् गीता मे भगवान श्रीकृष्ण के नाम और उनके अर्थ

 गीता में श्रीकृष्ण भगवान के नामों के अर्थ

अनन्तरूपः जिनके अनन्त रूप हैं वह | 

अच्युतः जिनका कभी क्षय नहीं होता, कभी अधोगति नहीं होती वह | 

अरिसूदनः प्रयत्न के बिना ही शत्रु का नाश करने वाले | 

कृष्णः 'कृष्' सत्तावाचक है | 'ण' आनन्दवाचक है | इन दोनों के एकत्व का सूचक परब्रह्म भी कृष्ण कहलाता है | 

केशवः क माने ब्रह्म को और ईश – शिव को वश में रखने वाले | 

केशिनिषूदनः घोड़े का आकार वाले केशि नामक दैत्य का नाश करने वाले | 

कमलपत्राक्षः कमल के पत्ते जैसी सुन्दर विशाल आँखों वाले | 

गोविन्दः गो माने वेदान्त वाक्यों के द्वारा जो जाने जा सकते हैं | 

जगत्पतिः जगत के पति | 

जगन्निवासः जिनमें जगत का निवास है अथवा जो जगत में सर्वत्र बसे हुए है | 

जनार्दनः दुष्ट जनों को, भक्तों के शत्रुओं को पीड़ित करने वाले | 

देवदेवः देवताओं के पूज्य | 

देववरः देवताओं में श्रेष्ठ | 

पुरुषोत्तमः क्षर और अक्षर दोनों पुरुषों से उत्तम अथवा शरीररूपी पुरों में रहने वाले पुरुषों यानी जीवों से जो अति उत्तम, परे और विलक्षण हैं वह | 

भगवानः ऐश्वर्य, धर्म, यश, लक्ष्मी, वैराग्य और मोक्ष... ये छः पदार्थ देने वाले अथवा सर्व भूतों की उत्पत्ति, प्रलय, जन्म, मरण तथा विद्या और अविद्या को जानने वाले | 

भूतभावनः सर्वभूतों को उत्पन्न करने वाले | 

भूतेशः भूतों के ईश्वर, पति | 

मधुसूदनः मधु नामक दैत्य को मारने वाले | 

महाबाहूः निग्रह और अनुग्रह करने में जिनके हाथ समर्थ हैं वह | 

माधवः माया के, लक्ष्मी के पति | 

यादवः यदुकुल में जन्मे हुए | 

योगवित्तमः योग जानने वालों में श्रेष्ठ | 

वासुदेवः वासुदेव के पुत्र | 

वार्ष्णेयः वृष्णि के ईश, स्वामी | 

हरिः संसाररूपी दुःख हरने वाले |

श्री कृष्ण शरणम ममः।

Saturday, May 2, 2020

May 02, 2020

Life Changing quotes: सुभाषित श्लोक




अभिवादनशीलस्य नित्यं वॄद्धोपसेविनः ।
चत्वारि तस्य वर्धन्ते आयुर्विद्या यशो बलम् ॥

अथार्त : विनम्र और नित्य अनुभवियों की सेवा करने वाले में चार गुणों का विकास होता है - आयु, विद्या, यश और बल ।

क्रोधो वैवस्वतो राजा तॄष्णा वैतरणी नदी।
विद्या कामदुघा धेनुः सन्तोषो नन्दनं वनम् ॥

अथार्त : क्रोध यमराज के समान है और तृष्णा नरक की वैतरणी नदी के समान। विद्या सभी इच्छाओं को पूरी करने वाली कामधेनु है और संतोष स्वर्ग का नंदन वन है ।

चित्तोद्वेगं विधायापि हरिर्यद्यत् करिष्यति ।
तथैव तस्य लीलेति मत्वा चिन्तां द्रुतं त्यजेत ॥

अथार्त : चिंता और उद्वेग में संयम रख कर और ऐसा मान कर कि श्रीहरि जो जो भी करेंगे वह उनकी लीला मात्र है, चिंता को शीघ्र त्याग दें ।

यथा हि एकेन चक्रेण न रथस्य गतिर्भवेत्।
एवं पुरूषकारेण विना दैवं न सिध्यति ॥

अथार्त : जिस प्रकार एक पहिये वाले रथ की गति संभव नहीं है, उसी प्रकार पुरुषार्थ के बिना केवल भाग्य से कार्य सिद्ध नहीं होते हैं ।

धॄतिः क्षमा दमोऽस्तेयं शौचमिन्द्रियनिग्रहः ।
धीर्विद्या सत्यमक्रोधो दशकं धर्मलक्षणम् ॥

अथार्त : धर्म के दस लक्षण हैं - धैर्य, क्षमा, आत्म-नियंत्रण, चोरी न करना, पवित्रता, इन्द्रिय-संयम, बुद्धि, विद्या, सत्य और क्रोध न करना ।

नलिनीदलगतजलमतितरलम् तद्वज्जीवितमतिश
यचपलम्।
विद्धि व्याध्यभिमानग्रस्तं लोक शोकहतं च समस्तम् ॥

अथार्त : जीवन कमल-पत्र पर पड़ी हुई पानी की बूंदों के समान अनिश्चित एवं अल्प है। यह समझ लो कि समस्त विश्व रोग, अहंकार और दु:ख में डूबा हुआ है।

सन्तोषः परमो लाभः सत्सङ्गः परमा गतिः ।
विचारः परमं ज्ञानं शमो हि परमं सुखम्।   

अथार्त : संतोष परम् बल है, सत्संग परम् गति है, विचार परम् ज्ञान है, और शम परम् सुख है ।

यावद्वित्तोपार्जनसक्तः तावन्निजपरिवारो रक्तः।
पश्चाज्जीवति जर्जरदेहे वार्तां कोऽपि न पृच्छति गेहे॥

अथार्त : जब तक व्यक्ति धनोपार्जन में समर्थ है, तब तक परिवार में सभी उसके प्रति स्नेह प्रदर्शित करते हैं परन्तु अशक्त हो जाने पर उसे सामान्य बातचीत में भी नहीं पूछा जाता है ।

कीटोऽपि सुमनःसंगादारोहति सतां शिरः ।
अश्मापि याति देवत्वं महद्भिः सुप्रतिष्ठितः ॥

अथार्त : पुष्प के संग से कीडा भी अच्छे लोगों के मस्तक पर चढता है । बडे लोगों से प्रतिष्ठित किया गया पत्थर भी देव बनता है ।

सन्तोषः परमं सौख्यं सन्तोषः परममृतम् ।
सन्तोषः परमं पथ्यं सन्तोषः परमं हितम् ॥

अथार्त : संतोष, यह परम् सौख्य, परम् अमृत, परम् पथ्य और परम् हितकारक है ।

शौचानां परमं शौचं गुणानां परमो गुणः ।
प्रभावो महिमा धाम शीलमेकं जगत्त्रये ॥

अथार्त : तीनों लोकों में एक शील ही परम् पवित्र चीझ, गुणों में श्रेष्ठ गुण, महिमा का धाम और प्रभाव है ।

विदेशेषु धनं विद्या व्यसनेषु धनं मतिः ।
परलोके धनं धर्मः शीलं सर्वत्र वै धनम् ॥

अथार्त : विदेश में विद्या धन, संकट में मति धन, परलोक में धर्म धन होता है । पर, शील तो सब जगह धन है ।

निशानां च दिनानां च यथा ज्योतिः विभूषणम् ।
सतीनां च यतीनां च तथा शीलमखण्डितम् ॥

अथार्त : जैसे प्रकाश, दिन और रात का भूषण है, वैसे अखंडित शील, सतीयों और यतियों का भूषण है ।

न मुक्ताभि र्न माणिक्यैः न वस्त्रै र्न परिच्छदैः ।
अलङ्कियेत शीलेन केवलेन हि मानवः ॥

अथार्त : मोती, माणेक, वस्त्र या पहनावे से नहीं, पर केवल शील से हि इन्सान विभूषित होता है ।

व्यायामात् लभते स्वास्थ्यं दीर्घायुष्यं बलं सुखं।
आरोग्यं परमं भाग्यं स्वास्थ्यं सर्वार्थसाधनम्॥

अथार्त : व्यायाम से स्वास्थ्य, लम्बी आयु, बल और सुख की प्राप्ति होती है। निरोगी होना परम भाग्य है और स्वास्थ्य से अन्य सभी कार्य सिद्ध होते हैं ।

शुश्रूषा श्रवणं चैव ग्रहणं धारणां तथा ।
ऊहापोहोऽर्थ विज्ञानं तत्त्वज्ञानं च धीगुणाः॥

अथार्त : शुश्रूषा, श्रवण, ग्रहण, धारण, चिंतन, उहापोह, अर्थविज्ञान, और तत्त्वज्ञान – ये बुद्धि के गुण हैं ।

दर्शने स्पर्शणे वापि श्रवणे भाषणेऽपि वा।
यत्र द्रवत्यन्तरङ्गं स स्नेह इति कथ्यते॥

अथार्त : यदि किसी को देखने से या स्पर्श करने से, सुनने से या बात करने से हृदय द्रवित हो तो इसे स्नेह कहा जाता है ।

नास्ति विद्या समं चक्षु नास्ति सत्य समं तप:।
नास्ति राग समं दुखं नास्ति त्याग समं सुखं॥

अथार्त : विद्या के समान आँख नहीं है, सत्य के समान तपस्या नहीं है, आसक्ति के समान दुःख नहीं है और त्याग के समान सुख नहीं है ।

उत्साहो बलवानार्य नास्त्युत्साहात्परं बलम्।
सोत्साहस्य च लोकेषु न किंचिदपि दुर्लभम्॥

अथार्त : उत्साह श्रेष्ठ पुरुषों का बल है, उत्साह से बढ़कर और कोई बल नहीं है। उत्साहित व्यक्ति के लिए इस लोक में कुछ भी दुर्लभ नहीं है ।

उदये सविता रक्तो रक्त:श्चास्तमये तथा।
सम्पत्तौ च विपत्तौ च महतामेकरूपता॥

अथार्त : उदय होते समय सूर्य लाल होता है और अस्त होते समय भी लाल होता है, सत्य है महापुरुष सुख और दुःख में समान रहते हैं ।

विदेशेषु धनं विद्या व्यसनेषु धनं मति:।
परलोके धनं धर्म शीलं सर्वत्र वै धनम्॥

अथार्त : विदेश में विद्या धन है, संकट में बुद्धि धन है, परलोक में धर्म धन है और शील सर्वत्र ही धन है ।

प्रदोषे दीपकश्चंद्र प्रभाते दीपको रवि:।
त्रैलोक्ये दीपको धर्म सुपुत्र: कुलदीपक:॥

अथार्त : शाम को चन्द्रमा प्रकाशित करता है, दिन को सूर्य प्रकाशित करता है, तीनों लोकों को धर्म प्रकाशित करता है और सुपुत्र पूरे कुल को प्रकाशित करता है ।

नाभिषेको न संस्कार सिंहस्य क्रियते वने।
विक्रमार्जितसत्वस्य स्वयमेव मृगेन्द्रता॥

अथार्त : कोई और सिंह का वन के राजा जैसे अभिषेक या संस्कार नहीं करता है, अपने पराक्रम के बल पर वह स्वयं पशुओं का राजा बन जाता है ।

यः पठति लिखति पश्यति परिपृच्छति पंडितान् उपाश्रयति।
तस्य दिवाकरकिरणैः नलिनी दलं इव विस्तारिता बुद्धिः॥

अथार्त : जो पढ़ता है, लिखता है, देखता है, प्रश्न पूछता है, बुद्धिमानों का आश्रय लेता है, उसकी बुद्धि उसी प्रकार बढ़ती है जैसे कि सूर्य किरणों से कमल की पंखुड़ियाँ ।

आयुषः क्षण एकोऽपि सर्वरत्नैर्न न लभ्यते।
नीयते स वृथा येन प्रमादः सुमहानहो ॥

अथार्त : आयु का एक क्षण भी सारे रत्नों को देने से प्राप्त नहीं किया जा सकता है, अतः इसको व्यर्थ में नष्ट कर देना महान असावधानी है ।

नारिकेलसमाकारा दृश्यन्तेऽपि हि सज्जनाः।
अन्ये बदरिकाकारा बहिरेव मनोहराः॥

अथार्त : सज्जन व्यक्ति नारियल के समान होते हैं, अन्य तो बदरी फल के समान केवल बाहर से ही अच्छे लगते हैं ।

गते शोको न कर्तव्यो भविष्यं नैव चिन्तयेत् ।
वर्तमानेन कालेन वर्तयन्ति विचक्षणाः॥

अथार्त : बीते हुए समय का शोक नहीं करना चाहिए और भविष्य के लिए परेशान नहीं होना चाहिए, बुद्धिमान तो वर्तमान में ही कार्य करते हैं ।

क्षमा बलमशक्तानाम् शक्तानाम् भूषणम् क्षमा।
क्षमा वशीकृते लोके क्षमयाः किम् न सिद्ध्यति॥

अथार्त : क्षमा निर्बलों का बल है, क्षमा बलवानों का आभूषण है, क्षमा ने इस विश्व को वश में किया हुआ है, क्षमा से कौन सा कार्य सिद्ध नहीं हो सकता है ।

न ही कश्चित् विजानाति किं कस्य श्वो भविष्यति।
अतः श्वः करणीयानि कुर्यादद्यैव बुद्धिमान्॥

अथार्त : कल क्या होगा यह कोई नहीं जानता है इसलिए कल के करने योग्य कार्य को आज कर लेने वाला ही बुद्धिमान है ।

क्षणशः कणशश्चैव विद्यामर्थं च साधयेत् ।
क्षणत्यागे कुतो विद्या कणत्यागे कुतो धनम्॥

अथार्त : क्षण-क्षण विद्या के लिए और कण-कण धन के लिए प्रयत्न करना चाहिए। समय नष्ट करने पर विद्या और साधनों के नष्ट करने पर धन कैसे प्राप्त हो सकता है ।

Sunday, April 26, 2020

April 26, 2020

Eye blindness and eye disease in astrology

Astrologically Significator:-

House

* 2nd house (represents right eye)

 * and 12th house (represents left eye)

 * Ascendant ( represents overall body and brain function)

* and 6th house ( represents disease)

Planets:

* Sun ( represents right eye)

* Moon ( represents left eye )

* Venus as principal Significator ( beauty of eyes)

* Saturn (significator of Blindness)
 
Signs:-

* Taurus ( represents right eye)

 * Pisces ( represents left eye)

* Aries (Represents brain),
Constellation/Star:

* Bharani & kritika

Combinations responsible for eye disease: -

1. If 2nd house, 2nd Lord and Sun afflicted, then it represents problem in right eye.

2. If 12th house, 12th Lord and Moon afflicted, then it represents problem in left eye.

3. 2nd lord afflicted by 6th Lord represents disease in left eye and 12th Lord afflicted by 6th lord represents disease in right eye.

4. 2nd lord Or 12th lord present in 6th house or 6th Lord present in 2nd house or 12th house represents eye disease.

5. Sun is afflicted by Saturn represents problem in right eye and Moon is afflicted by Saturn represents problem in left eye.

6. Combust Venus represents eye disease also.

7. Afflicted Sun/Moon represents eye disease.

When: -

1. During 6th Lord period (dasha)

2. During Sun-Saturn, Sun-Rahu Period.

3. During Moon-Saturn, Moon-Rahu/Ketu Period.

4. During 6th lord-2nd Lord period.

5. During 12th Lord-6th lord period.

Eye Blindness:

Afflicted Sun, Moon, 2nd lord, 12th lord, Ascendant and Ascendant lord represents eye blindness

Example 1: - Horoscope of blind man





Combinations responsible for eye blindness: -

1. Ascendant lord in 12th house- Weak position

2. Sun is in 12th house- Weak position

3. 2nd and 12th house afflicted by Rahu/Ketu aspects.

4. Sun is in 12th house- weak position

5. Moon and Ascendant both are afflicted by Saturn (Negative factor)

6. Ascendant is damaged by Paap Kartari Dosha.

7. Ascendant is weak but Markesh is too strong- Negative factor

8. Ascendant, 4th house and Moon, all are afflicted by 6th lord (Negative factor)

9. At the time of born he was suffering from Rahu Period and Sun period with Saturn Sub sub period- Worst Period

So there are many negative factors present, which are responsible for eye blindness...


Example 2: - Horoscope of Singer and Music composer Ravindra Jain




Combinations responsible:-

1. Ascendant and Ascendant Lord is afflicted.

2. Sun in 12th house.

3. 2nd Lord afflicted by Saturn.

4. Venus is afflicted.

5. At the time of birth he was suffering from Ketu period and Saturn sub period.

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Friday, April 24, 2020

April 24, 2020

सुभाषित श्लोक best quotes in sanskrit with hindi translation

सुभाषित श्लोक best quotes in sanskrit with hindi translation



उत्साहो बलवानार्य नास्त्युत्साहात्परं बलम्।
सोत्साहस्य च लोकेषु न किंचिदपि दुर्लभम्॥

अथार्त : उत्साह श्रेष्ठ पुरुषों का बल है, उत्साह से बढ़कर और कोई बल नहीं है। उत्साहित व्यक्ति के लिए इस लोक में कुछ भी दुर्लभ नहीं है ।

उदये सविता रक्तो रक्त:श्चास्तमये तथा।
सम्पत्तौ च विपत्तौ च महतामेकरूपता॥

अथार्त : उदय होते समय सूर्य लाल होता है और अस्त होते समय भी लाल होता है, सत्य है महापुरुष सुख और दुःख में समान रहते हैं ।

विदेशेषु धनं विद्या व्यसनेषु धनं मति:।
परलोके धनं धर्म शीलं सर्वत्र वै धनम्॥

अथार्त : विदेश में विद्या धन है, संकट में बुद्धि धन है, परलोक में धर्म धन है और शील सर्वत्र ही धन है ।

प्रदोषे दीपकश्चंद्र प्रभाते दीपको रवि:।
त्रैलोक्ये दीपको धर्म सुपुत्र: कुलदीपक:॥

अथार्त : शाम को चन्द्रमा प्रकाशित करता है, दिन को सूर्य प्रकाशित करता है, तीनों लोकों को धर्म प्रकाशित करता है और सुपुत्र पूरे कुल को प्रकाशित करता है ।

नाभिषेको न संस्कार सिंहस्य क्रियते वने।
विक्रमार्जितसत्वस्य स्वयमेव मृगेन्द्रता॥

अथार्त : कोई और सिंह का वन के राजा जैसे अभिषेक या संस्कार नहीं करता है, अपने पराक्रम के बल पर वह स्वयं पशुओं का राजा बन जाता है ।

यः पठति लिखति पश्यति परिपृच्छति पंडितान् उपाश्रयति।
तस्य दिवाकरकिरणैः नलिनी दलं इव विस्तारिता बुद्धिः॥

अथार्त : जो पढ़ता है, लिखता है, देखता है, प्रश्न पूछता है, बुद्धिमानों का आश्रय लेता है, उसकी बुद्धि उसी प्रकार बढ़ती है जैसे कि सूर्य किरणों से कमल की पंखुड़ियाँ ।

आयुषः क्षण एकोऽपि सर्वरत्नैर्न न लभ्यते।
नीयते स वृथा येन प्रमादः सुमहानहो ॥

अथार्त : आयु का एक क्षण भी सारे रत्नों को देने से प्राप्त नहीं किया जा सकता है, अतः इसको व्यर्थ में नष्ट कर देना महान असावधानी है ।

नारिकेलसमाकारा दृश्यन्तेऽपि हि सज्जनाः।
अन्ये बदरिकाकारा बहिरेव मनोहराः॥

अथार्त : सज्जन व्यक्ति नारियल के समान होते हैं, अन्य तो बदरी फल के समान केवल बाहर से ही अच्छे लगते हैं ।

गते शोको न कर्तव्यो भविष्यं नैव चिन्तयेत् ।
वर्तमानेन कालेन वर्तयन्ति विचक्षणाः॥

अथार्त : बीते हुए समय का शोक नहीं करना चाहिए और भविष्य के लिए परेशान नहीं होना चाहिए, बुद्धिमान तो वर्तमान में ही कार्य करते हैं ।

क्षमा बलमशक्तानाम् शक्तानाम् भूषणम् क्षमा।
क्षमा वशीकृते लोके क्षमयाः किम् न सिद्ध्यति॥

अथार्त : क्षमा निर्बलों का बल है, क्षमा बलवानों का आभूषण है, क्षमा ने इस विश्व को वश में किया हुआ है, क्षमा से कौन सा कार्य सिद्ध नहीं हो सकता है ।

न ही कश्चित् विजानाति किं कस्य श्वो भविष्यति।
अतः श्वः करणीयानि कुर्यादद्यैव बुद्धिमान्॥

अथार्त : कल क्या होगा यह कोई नहीं जानता है इसलिए कल के करने योग्य कार्य को आज कर लेने वाला ही बुद्धिमान है ।

क्षणशः कणशश्चैव विद्यामर्थं च साधयेत् ।
क्षणत्यागे कुतो विद्या कणत्यागे कुतो धनम्॥

अथार्त : क्षण-क्षण विद्या के लिए और कण-कण धन के लिए प्रयत्न करना चाहिए। समय नष्ट करने पर विद्या और साधनों के नष्ट करने पर धन कैसे प्राप्त हो सकता है ।

अग्निशेषमृणशेषं शत्रुशेषं तथैव च ।
पुन: पुन: प्रवर्धेत तस्माच्शेषं न कारयेत् ॥

अथार्त : यदि कोई आग, ऋण, या शत्रु अल्प मात्रा अथवा न्यूनतम सीमा तक भी अस्तित्व में बचा रहेगा तो बार बार बढ़ेगा ; अत: इन्हें थोड़ा सा भी बचा नही रहने देना चाहिए । इन तीनों को सम्पूर्ण रूप से समाप्त ही कर डालना चाहिए ।

अष्टौ गुणा पुरुषं दीपयंति प्रज्ञा सुशीलत्वदमौ श्रुतं च।
पराक्रमश्चबहुभाषिता च दानं यथाशक्ति कृतज्ञता च॥

अथार्त : आठ गुण पुरुष को सुशोभित करते हैं - बुद्धि, सुन्दर चरित्र, आत्म-नियंत्रण, शास्त्र-अध्ययन, साहस, मितभाषिता, यथाशक्ति दान और कृतज्ञता ।

आरोग्य बुद्धि विनयोद्यम शास्त्ररागाः ।
आभ्यन्तराः पठन सिद्धिकराः भवन्ति ।।

अर्थात:- आरोग्य, बुद्धि, विनय, उद्यम, और शास्त्र के प्रति अत्यधिक प्रेम – ये पाँच पढ़ने के लिए जरूरी आंतरिक गुण हैं।

सालस्यो गर्वितो निद्रः परहस्तेन लेखकः ।
अल्पविद्यो विवादी च षडेते आत्मघातकाः ॥

अर्थात:- आलसी होना, झूठा घमंड होना, बहुत ज्यादा सोना, पराये के पास लिखाना, अल्प विद्या, और वाद-विवाद ये छः आत्मघाती हैं!

अजरामरवत् प्राज्ञः विद्यामर्थं च साधयेत् ।
गृहीत एव केशेषु मृत्युना धर्ममाचरेत् ॥

अर्थात:- बुढापा और मृत्यु नहीं आनेवाले है, ऐसा समझकर मनुष्य को विद्या और धन प्राप्त करना चाहिए| पर मृत्यु ने हमारे बाल पकड़े हैं, यह समझकर धर्माचरण करना चाहिये।

विद्या वितर्का विज्ञानं स्मति: तत्परता किया।
यस्यैते षड्गुणास्तस्य नासाध्यमतिवर्तते ॥

अर्थात:- विद्या, तर्कशक्ति, विज्ञान, स्मृतिशक्ति, तत्परता, और कार्यशीलता, ये छ: जिसके पास हैं, उसके लिए कुछ भी असाध्य नहीं है|

अभिवादनशीलस्य नित्यं वृद्धोपसेविन:।
चत्वारि तस्य वर्धन्ते आयुर्विद्या यशोबलं।।

अर्थात:- बड़ों का सम्मान करने वाले और नित्य वृद्धों (बुजुर्गों) की सेवा करने वाले मनुष्य की आयु, विद्या, यश और बल ये चार चीजें बढ़ती हैं।

विद्या नाम नरस्य कीर्तिरतुला भाग्यक्षये चाश्रयो
धेनुः कामदुधा रतिश्च विरहे नेत्रं तृतीयं च सा ।।

सत्कारायतनं कुलस्य महिमा रत्नैर्विना भूषणम्
तस्मादन्यमुपेक्ष्य सर्वविषयं विद्याधिकारं कुरु ॥

अर्थात:- विद्या अनुपम कीर्ति है, भाग्य का नाश होने पर वह आश्रय देती है, कामधेनु है, विरह(अभाव) में रति (आनंद) समान है, तीसरा नेत्र है, सत्कार का मंदिर है, कुल-महिमा है, बगैर रत्न का आभूषण है, इसलिए अन्य सब विषयों को छोडकर विद्या का अधिकारी बन।

दुर्जन:परिहर्तव्यो विद्यालंकृतो सन ।
मणिना भूषितो सर्प:किमसौ न भयंकर:।।

अर्थात:- दुष्ट व्यक्ति यदि विद्या से सुशोभित भी हो अर्थात वह विद्यावान भी हो तो भी उसका परित्याग कर देना चाहिए। जैसे मणि से सुशोभित सर्प क्या भयंकर नहीं होता।

यस्य नास्ति स्वयं प्रज्ञा, शास्त्रं तस्य करोति किं।
लोचनाभ्याम विहीनस्य, दर्पण:किं करिष्यति।।

अर्थात:- जिस मनुष्य के पास स्वयं का(प्रज्ञा) विवेक नहीं है, उसके शास्त्र किस काम के, जैसे नेत्रविहीन व्यक्ति के लिए दर्पण व्यर्थ है।

विद्या नाम नरस्य रूपमधिकं प्रच्छन्नगुप्तं धनम्।
विद्या भोगकरी यशः सुखकरी विद्या गुरूणां गुरुः।

विद्या बन्धुजनो विदेशगमने विद्या परं दैवतम्।
विद्या राजसु पुज्यते न हि धनं विद्याविहीनः पशुः॥

अर्थात:- विद्या इन्सान का विशिष्ट रुप है, विद्या गुप्त धन है. वह भोग देनेवाली, यशदेने वाली, और सुखकारी है. विद्या गुरुओं की गुरु है, विदेश में विद्या बंधु है| विद्या बड़ी देवता है, राजाओं में विद्या की पूजा होती है, धन की नहीं, विद्याविहीन व्यक्ति पशु हीं है।

विद्या शस्त्रं च शास्त्रं च द्वे विद्ये प्रतिपत्तये ।।
आद्या हास्याय वृद्धत्वे द्वितीयाद्रियते सदा ॥

अर्थात:- शस्त्रविद्या और शास्त्रविद्या ये दो प्राप्त करने योग्य विद्या हैं| इनमें से पहली वृद्धावस्था में हास्यास्पद बनाती है और दूसरी सदा आदर दिलाती है|

मनस्येकं वचस्येकं कर्मण्येकं महात्मनाम्।
मनस्यन्यत् वचस्यन्यत् कर्मण्यन्यत् दुरात्मनाम् ।।

अथार्त : महान व्यक्तियों के मन मे जो विचार होता है वही वे बोलते हैं और वैसा ही इनका शुद्ध आचरण होता है। इसके विपरीत दुष्ट के मन मे कुछ और होता है, बोलते कुछ और हैं, और करते कुछ और ऐसे लोगों पर अँधा विश्वाश करना अपने पेरों पे खुद कुल्हाड़ी मारने जैसा है।

अनादरो विलम्बश्च वै मुख्यम निष्ठुर वचनम
पश्चतपश्च पञ्चापि दानस्य दूषणानि च।।

अथार्त : अपमान करके दान देना, विलंब(देर) से देना, मुख फेर के देना, कठोर वचन बोलना और देने के बाद पश्चाताप करना| ये पांच क्रियाएं दान को दूषित कर देती हैं।

लुब्धमर्थेन गृणीयात् क्रुद्धमञ्जलिकर्मणा।
मूर्ख छन्दानुवृत्त्या च तत्वार्थेन च पण्डितम्  ।।

अथार्त : लालची मनुष्य को धन (का लालच) देकर वश में किया जा सकता है। क्रोधित व्यक्ति के साथ नम्र भाव रखकर उसे वश में किया जा सकता है। मूर्ख मनुष्य को उसके इच्छा अनुरूप बर्ताव कर वश में किया जा सकता है। लेकिन ज्ञानि व्यक्ति को केवल मुलभूत तत्व (सत्य) बताकर ही वश में कर सकते है।

चलन्तु गिरय: कामं युगान्तपवनाहताः।
कृच्छेरपि न चलत्येव धीराणां निश्चलं मनः।।

अथार्त : युगान्तकालीन वायु के झोंकों से पर्वत भले ही चलने लगें, परन्तु धैर्यवान् पुरूषों के निश्चल मन किसी भी संकट में नहीं डगमगाते ।


गुणेषु क्रियतां यत्नः किमाटोपैः प्रयोजनम्।
विक्रीयन्ते न घण्टाभि: गाव: क्षीरविवर्जिताः।।

अथार्त : स्वयं के आचरण और व्यवहार में अच्छे गुणों की वृद्धी करनी चहिए। दिखावा करके लाभ नहीं होता। जैसे दुध न देने वाली गाय उसके गले मे लटकी हुई घंटी बजाने से बेची नही जा सकती।

न प्राप्यति सम्माने नापमाने च कुप्यति।
न क्रुद्धः परूषं ब्रूयात् स वै साधूत्तमः स्मृतः।।

अथार्त : संत वही है जो मान देने पर हर्षित नही होता, अपमान होने पर क्रोधीत नही होता तथा स्वयं क्रोधीत होने पर कठोर शब्द नही बोलता।

यावत् भ्रियेत जठरं तावत सत्वं हि देहीनाम्।
अधिकं योभिमन्येत स स्तेनो दण्डमर्हति।।

अथार्त : अपने स्वयं के पोषण के लिए जितना धन आवश्यक है उतने पर ही अपना अधिकार है। यदि इससे अधिक पर हमने अपना अधिकार जमाया तो यह सामाजिक अपराध है तथा हम दण्ड के पात्र है।

को न याति वशं लोके मुखे पिण्डेन पूरितः।
मृदंगो मुखलेपेन करोति मधुरध्वनिम्।।

अथार्त : इस संसार में कौन ऐसा है जो मुख में भोजन देने (इच्छा या आवश्यकता की पूर्ति) कर देने पर वश में नहीं हो जाता ?
मृदंग (ढोलक) भी मुंह पर आटे का लेप लगाने के उपरांत मधुर ध्वनि देने लगता है।

श्रमेण दुःखं यत्किन्चिकार्यकालेनुभूयते।
कालेन स्मर्यमाणं तत् प्रामोद ।।

अथार्त : उचित काम को करते समय होने वाले कष्ट के कारण थोडा दु:ख तो होता है। परन्तु भविष्य में उस काम का स्मरण होने पर निश्चित ही आनंद का अनुभव होता है।

खद्योतो द्योतते तावद् यवन्नोदयते शशी।
उदिते तु सहस्रांशौ न खद्योतो न चन्द्रमाः। ।

अथार्त : जब तक चन्द्रमा उगता नही, तब तक जुगनु चमकता है। परन्तु जब सुरज उगता है तब जुगनु भी नही होता तथा चन्द्रमा भी नही, दोनो सुरज के सामने फीके पड़ते है। अर्थार्थ सूरज की भांति ज्ञानवान बनो, पूरा विश्व आपके सामने नतमस्तक होगा।

सर्वनाशे समुत्पन्ने ह्मधं त्यजति पण्डित:।
अर्धेन कुरुते कार्यं सर्वनाशो हि दुःसहः  । ।

अथार्त : जब सर्वनाश निकट आता है, तब बुद्धिमान मनुष्य अपने पास जो कुछ है उसका आधा गवाने (आधा बचाने) का प्रयास करता है। क्योंकि आधे से भी काम चलाया जा सकता है, परंतु सब कुछ गवाना बहुत दु:खदायक होता है।

शरदिन वर्षति गर्जति वर्षति वर्षासु नि:स्वनो मेघ:  ।
नीचो वदति न कुरुते न वदति सुजन: करोत्येव  ।।

अथार्त : शरद ऋतु में बादल केवल गरजते है, बरसते नही। वर्षा ऋतु में बरसते है, गरजते नही। नीच (दुष्ट) मनुष्य केवल बोलता है, कुछ करता नही| परन्तु सज्जन करता है, बोलता नही।

अधर्मेणैवते पूर्व ततो भद्राणि पश्यति।
ततः सपत्नान् जयति समूलस्तु विनश्यति। ।

अथार्त : कुटिलता व अधर्म से मानव क्षणिक समृद्वि व संपन्नता तो हांसिल कर लेता है। शत्रु को भी जीत लेता है। अपनी कामयाबी पर प्रसन्न भी होता है। परन्तु अन्त मे उसका विनाश निश्चित है।

असभ्दिः शपथेनोक्तं जले लिखितमक्षरम्  ।
सभ्दिस्तु लीलया प्रोक्तं शिलालिखितमक्षरम्। ।

अथार्त : दुर्जनो ने ली हुइ शपथ भी पानी के उपर लिखे हुए अक्षरों जैसे क्षणभंगूर ही होती है। परन्तु संत व्यक्ति ने सहज रूप से बोला हुआ वाक्य भी पत्थर पर खिंची हुई लकीर की तरह होता है ।।

आरोप्यते शिला शैले यत्नेन महता यथा ।
पात्यते तु क्षणेनाधस्तथात्मा गुणदोषयोः ।।

अथार्त : शिला को पर्वत के उपर ले जाना एक कठिन कार्य है परन्तु पर्वत के उपर से नीचे ढकेलना बहुत ही सुलभ। ऐसे ही मनुष्य को सदगुणों से युक्त करना कठिन है पर उसे दुर्गुणों से भरना बहुत ही सुलभ है।

न मर्षयन्ति चात्मानं संभावयितुमात्मना।
अदर्शयित्वा शूरास्तू कर्म कुर्वन्ति दुष्करम्।।

अथार्त : शूरवीर अपने मुख पर दूसरों के द्वारा की गई प्रसंशा पसंद नहीं करते| शूरवीर अपना पराक्रम शब्दों से नहीं बल्कि मुश्किल और कठिन कार्यों को करके दिखाते हैं|

आस्ते भग आसीनस्योर्ध्वस्तिष्ठति तिष्ठतः।
शेते निपद्यमानस्य चराति चरतो भगश्चरैवेति ।।

जो मनुष्य (कुछ काम किए बिना) बैठता है, उसका भाग्य भी बैठता है। जो खड़ा रहता है, उसका भाग्य भी खड़ा रहता है। जो सोता है। उसका भाग्य भी सोता जाता है और जो चलने लगता है, उसका भाग्य भी चलने लगता है। अर्थात कर्म से ही भाग्य बदलता है ।

सर्वार्थसंभवो देहो जनित: पोषितो यतः।
न तयोर्याति निर्वेशं पित्रोर्मत्र्य: शतायुषा ।।

एक, सौ वर्ष की आयु प्राप्त हुआ मनुष्य देह भी अपने माता पिता के ऋणों से मुक्त नहीं होता। जो देह चार पुरूषार्थो (धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष) की प्राप्तिी का प्रमुख साधन हैं, इस शरीर का निर्माण तथा पोषण जिन के कारण हुआ है, उनके ऋण से मुक्त होना असंभव है।

न अन्नोदकसमं दानं न तिथिद्वादशीसमा ।
न गायत्रयाः परो मन्त्रो न मातु: परदैवतम् ॥

अथार्त : अन्नदान जैसा दान नही है। द्वादशी जैसी पवित्र तिथी नही है। गायत्री मन्त्र सर्वश्रेष्ठ मन्त्र है तथा माता सब देवताओं से भी श्रेष्ठ है।

यदा न कुरूते भावं सर्वभूतेष्वमंगलम्।
समदृष्टेस्तदा पुंसः सर्वाः सुखमया दिश:।।

अथार्त : जो मनुष्य किसी भी जीव के प्रति अमंगल भावना नहीं रखता, जो मनुष्य सभी की ओर सम्यक् दृष्टी (समान) से देखता है, ऐसे मनुष्य को सब ओर सुख ही सुख है।


स्वभावं न जहात्येव साधुरापद्गतोऽपि सन् ।
कर्पूरः पावकस्पृष्टः सौरभं लभतेतराम्।  ।

अथार्त : सज्जन व्यक्ति अपना नैसर्गिक अच्छा स्वभाव किसी बडी आपदा में भी उसी प्रकार नहीं छोड़ता हैं जिस प्रकार आग के संपर्क में भी आकर कपूर अपना मूल स्वाभाव(सुगंध) नहीं छोड़ता है बल्कि और भी अधिक सुगंध फैलाता है।

शोको नाशयते धैर्य, शोको नाशयते श्रृतम् ।।
शोको नाशयते सर्वं, नास्ति शोकसमो रिपुः ॥

अथार्त : शोक धैर्य को नष्ट करता है, शोक ज्ञान को नष्ट करता है, शोक सर्वस्व का नाश करता है । इस लिए शोक जैसा कोइ शत्रू नही है।

श्रिय: प्रसूते विपदः रुणद्धि, यशांसि दुग्धे मलिनं प्रमार्टि।
संस्कार सौधेन परं पुनीते, शुद्धा हि बुद्धिः किलकामधेनुः ।।

अथार्त : पवित्र और शुद्ध बुद्धि (समझ) कामधेनु के सामान है, यह धन-धान्य पैदा करती है; विपत्तियों से बचाती है; यश और कीर्ति रूपी दूध से मलिनता को धो डालती है; और निकटतम लोगों को अपने पवित्र संस्कारों से पवित्र करती है।

दयाहीनं निष्फलं स्यान्नास्ति धर्मस्तु तत्र हि।
एते वेदा अवेदाः स्यु र्दया यत्र न विद्यते ।।

अथार्त : दयाभाव के बिना किया गया कर्म का फलरहित होता है, ऐसे काम में धर्म(सत्य) नहीं होता| जहाँ दया नही है वहां वेद (धर्म) भी अवेद (अधर्म) बन जाते हैं।

चंचलं हि मनः कृष्ण प्रमाथि बलवद्दृढम्।
तस्याहं निग्रहं मन्ये वायोरिव सुदुष्करम्   ।।

अथार्त : ( अर्जुन ने श्री हरि से पूछा ) हे कृष्ण ! यह मन चंचल और प्रमथन स्वभाव का तथा बलवान् और दृढ़ है ; उसका निग्रह ( वश में करना ) मैं वायु के समान अति दुष्कर मानता हूँ।

असंशयं महाबाहो मनो दुर्निग्रहं चलम्।
अभ्यासेन तु कौन्तेय वैराग्येण च गृह्येते।।

अथार्त : ( श्री भगवान् बोले ) हे महाबाहो ! निःसंदेह मन चंचल और कठिनता से वश में होने वाला है लेकिन हे कुंतीपुत्र ! उसे अभ्यास और वैराग्य से वश में किया जा सकता है।

अवश्यमेव भोक्तव्यं कृतं कर्म शुभाशुभम् ।
नाभुक्तं क्षीयते कर्म कल्पकोटिशतैरपि ।।

अर्थात- किया हुआ शुभ अथवा अशुभ कर्म अवश्य ही भोगना पढता है,करोड कल्प बीत जाने पर भी बिना भोगे कर्म का क्षय नहीं होता है।

अस्ति चेदिश्वरः कश्चित फलरूप्यन्यकर्मणाम् ।
कर्तारं भजते सोऽपि न ह्यकर्तुः प्रभर्हि सः ।।

अर्थात- प्राणियो को उनके लिए काम का शुभ अथवा अशुभ फल देने वाला कर्मातिरिक्त यदि कोई ईश्वर मान भी लिया जाए तो वह भी फल देने के समय कर्म करने वाले व्यक्ति की ही अपेक्षा रखता है, जो कर्म नहीं करता उसको फल नहीं देता इसलिए कर्म करना परमावश्यक है।

दर्शने स्पर्शणे वापि श्रवणे भाषणेऽपि वा।
यत्र द्रवत्यन्तरङ्गं स स्नेह इति कथ्यते॥

अथार्त : यदि किसी को देखने से या स्पर्श करने से, सुनने से या बात करने से हृदय द्रवित हो तो इसे स्नेह कहा जाता है ।

नास्ति विद्या समं चक्षु नास्ति सत्य समं तप:।
नास्ति राग समं दुखं नास्ति त्याग समं सुखं॥

अथार्त : विद्या के समान आँख नहीं है, सत्य के समान तपस्या नहीं है, आसक्ति के समान दुःख नहीं है और त्याग के समान सुख नहीं है ।

Thursday, April 23, 2020

April 23, 2020

Narayan Kavach in sanskrit with hindi and English translation

नारायण कवच: - Narayan Kavach with hindi and English translation




श्री हरिः अथ श्रीनारायणकवच ( श्रीमद्भागवत स्कन्ध 6 , अ। 8 )

राजोवाच

यया गुप्तः सहस्त्राक्षः सवाहान् रिपुसैनिकान् क्रीडन्निव विनिर्जित्य त्रिलोक्या बुभुजे श्रियम् 1
भगवंस्तन्ममाख्याहि वर्म नारायणात्मकम् यथाSSततायिनः शत्रून् येन गुप्तोSजयन्मृधे 2

Rajo Uvacha:

Yaya guptha sahasraksha savaahaan ripu sainikan,
Kreedanniva vinirjithya trilokya bhubhuje sriyam, 1
Bhagawam sthan mamakhyahi varma narayanathmakam,
Yadha athathayina shathroon yena guptho jayan mrudhe. 2

राजा परिक्षित ने पूछा --- भगवन् ! देवराज इंद्र ने जिससे सुरक्षित होकर शत्रुओं की चतुरङ्गिणी सेना को खेल-खेल में अनायास ही जीतकर त्रिलोकी की राज लक्ष्मी का उपभोग किया , आप उस नारायण कवच को सुनाइये और यह भी बतलाईये कि उन्होंने उससे सुरक्षित होकर रणभूमि में किस प्रकार आक्रमणकारी शत्रुओं पर विजय प्राप्त की 1-2

The king said:
Oh God please share with me that armour of Narayana,
By which the thousand eyed Indra was able to drive away,
The well armed soldiers of his enemy as if it is a play,
And gain control of the three worlds and wealth,
And also was safe in the battle field and became victorious.

श्रीशुक उवाच: वृतः पुरोहितोस्त्वाष्ट्रो महेन्द्रायानुपृच्छते नारायणाख्यं वर्माह तदिहैकमनाः शृणु 3

Sri Shuka Uvacha:
Vrutha, purohitha thwashtro mahendra yanu pruchathe,
Narayanakhyam varmaha thadihaika mana srunu. 3

श्रीशुकदेवजी ने कहा --- परीक्षित्! जब देवताओं ने विश्वरूप को पुरोहित बना लिया ,तब देवराज इन्द्र के प्रश्न करने पर विश्वरूप ने नारायण कवच का उपदेश दिया तुम एकाग्रचित्त से उसका श्रवण करो 3

Sri Shuka said:
Viswaroopa the son of Thwashtra, when he was made,
The priest Of Indra taught him this armour of Narayana,
And I will teach you that and please listen to it with concentration.


विश्वरूप उवाचधौताङ्घ्रिपाणिराचम्य सपवित्र उदङ् मुखः कृतस्वाङ्गकरन्यासो मन्त्राभ्यां वाग्यतः शुचिः 4

नारायणमयं वर्म संनह्येद् भय आगते पादयोर्जानुनोरूर्वोरूदरे हृद्यथोरसि 5

मुखे शिरस्यानुपूर्व्यादोंकारादीनि विन्यसेत् ऊँ नमो नारायणायेति विपर्ययमथापि वा 6

Viswaroopa Uvacha:
Dhouthangri panir achamya sapavithra udang mukha,
Kruthaswa anga kara nyaso manthrabhyam vagyatha suchi. 4


Narayana mayam varma sannahyedh bhaya agathe,
Daiva bhoothathma karmebhya narayana maya puman. 5

Padyor janu noruvor udhare hrudhyadhorasi,
Mukhe sirasya anu poorva omgaradheeni vinyaseth.Om namo narayanethi viparyaya madhapi vaa, 6


विश्वरूप ने कहा -- देवराज इन्द्र ! भय का अवसर उपस्थित होने पर नारायण कवच धारण करके अपने शरीर की रक्षा कर लेनी चाहिए उसकी विधि यह है कि पहले हाँथ-पैर धोकर आचमन करे ,फिर हाथ में कुश की पवित्री धारण करके उत्तर मुख करके बैठ जाय इसके बाद कवच धारण पर्यंत और कुछ न बोलने का निश्चय करके पवित्रता से ' ऊँ नमो नारायणाय ' और ' ऊँ नमो भगवते वासुदेवाय ' ---- इन मंत्रों के द्वारा हृदयादि अङ्गन्यास तथा अङ्गुष्ठादि करन्यास करे पहले ' ऊँ नमो नारायणाय ' इस अष्टाक्षर मन्त्र के ऊँ आदि आठ अक्षरों का क्रमशः पैरों , घुटनों ,जाँघों , पेट , हृदय ,वक्षःस्थल , मुख , और सिर में न्यास करे अथवा पूर्वोक्त मन्त्र के यकार से लेकर ऊँ कार तक आठ अक्षरों का सिर से आरम्भ कर उन्हीं आठ अङ्गों में विपरित क्रम से न्यास करे 4-6

When fear approaches you, after washing your feet and hand,
Do internal purification by achamana, wear the holy ring made of Durba,
Face the north, sit on a seat of Durba grass and do the hand symbols,
And do holy chants and attain cleanliness of speech.
You should then become silent, become engrossed in Narayana,
And do suitable actions to tie yourself with the armour of Narayana,
And using the eight letters starting with OM, touch the feet,
Knees, thighs, belly heart chest, face and head,


करन्यासं ततः कुर्याद् द्वादशाक्षरविद्यया प्रणवादियकारन्तमङ्गुल्यङ्गुष्ठपर्वसु 7


Kara nyasam Thatha kuryad dwadasakshara vidhyaya, 7

Pranavadhi yakarandha mangulyam angushta parvasu

तदनन्तर ' ऊँ ' नमो भगवते वासुदेवाय ' इस द्वादशाक्षर -मन्त्र के ऊँ आदि बारह अक्षरों का दायीं तर्जनी से बाँयीं तर्जनी तक दोनों हाँथ की आठ अँगुलियों और दोनों अँगुठों की दो-दो गाठों में न्यास करे 7

न्यसेद् हृदय ओङ्कारं विकारमनु मूर्धनि षकारं तु भ्रुवोर्मध्ये णकारं शिखया दिशेत् 8
,
Nyased drudaya omkaram vikara manu moordhani.

Shakaranthu brovor madhye nakaram shikhayam nyased

वेकारं नेत्रयोर्युञ्ज्यान्नकारं सर्वसन्धिषु मकारमस्त्रमुद्दिश्य मन्त्रमूर्तिर्भवेद् बुधः 9
,
Vekaram nethrayor yunjyannakaram sarva sandhishu.

Makara masthra mudhisya mantha moorthir bhaved budha,

सविसर्गं फडन्तं तत् सर्वदिक्षु विनिर्दिशेत् ऊँ विष्णवे नम इति 10


Sarva sanga shadantham thath sarva dikshu vinirdisheth,
Om Vishnava nama ithi. 10

फिर ' ऊँ विष्णवे नमः ' इस मन्त्र के पहले के पहले अक्षर 'ऊँ ' का हृदय में , ' वि ' का ब्रह्मरन्ध्र , में ' ष ' का भौहों के बीच में ,'ण ' का चोटी में , ' वे ' का दोनों नेत्रों और 'न' का शरीर की सब गाँठों में न्यास करे तदनन्तर 'ऊँ मः अस्त्राय फट्' कहकर दिग्बन्द करे इस प्रकर न्यास करने से इस विधि को जानने वाला पुरूष मन्त्र हो जाता है 8-10

Tell Sha and touch the middle of the eye brows,
Tell Na and touch the top of the hair on your head
Tell Ve and touch both your eyes,
Tell Na and touch all your joints,
Facing all directions and say Ma Asthraya Phat,
This would make even the dim witted in to a wise one,
And thus you tie all the six directions as directed,
And chant Om salutations to Lord Vishnu!

आत्मानं परमं ध्यायेद ध्येयं षट्शक्तिभिर्युतम् विद्यातेजस्तपोमूर्तिमिमं मन्त्रमुदाहरेत 11

Athmanam paramam dhyeyed dhyeyam shad shakthibhir yudham,
Vidhya thejas thapo murthim imam manthra mudhahareth. 11


Afterwards meditate on Athma supported by the six strengths,
Of Wealth, charity, fame, goddess of wealth, wisdom and renunciation,
And chant the following which has the form of knowledge, power and meditation.


Narayana Kavacham


ऊँ हरिर्विदध्यान्मम सर्वरक्षां न्यस्ताङ्घ्रिपद्मः पतगेन्द्रपृष्ठे दरारिचर्मासिगदेषुचापाशान् दधानोSष्टगुणोSष्टबाहुः 12

Om harir vidhadhyan mama sarva raksham.
Nyashngir padma padgendra prushte,
Dharari charmasi gadheshu chapa,
Pasan dadhano ashtaguno ashta bahu. 12

भगवान् श्रीहरि गरूड़जी के पीठ पर अपने चरणकमल रखे हुए हैं अणिमा आदि आठों सिद्धियाँ उनकी सेवा कर रही हैं आठ हाँथों में शंख ,चक्र , ढाल ,तलवार , गदा , बाण , धनुष , और पाश (फंदा ) धारण किए हुए हैं वे ही ओंकार स्वरूप प्रभु सब प्रकार से सब ओर से मेरी रक्षा करें


May all the protection to me be given by Hari,
Who keeps his lotus feet on the back of the bird,
Who is armed with conch, wheel, sword, mace,
Bow and a rope and who has eight qualities and eight hands.



जलेषु मां रक्षतु मत्स्यमूर्तिर्यादोगणेभ्यो वरूणस्य पाशात् स्थलेषु मायावटुवामनोSव्यात् त्रिविक्रमः खेऽवतु विश्वरूपः 13

Jaleshu maam rakshathu mathsya moorthir,
Yadho ganebhyo varunasya pasad,
Sthaleshu maya vatu vamano avyal,
Trivikrama khevadu viswaroopa. 13


मत्स्यमूर्ति भगवान् जल के भीतर जलजंतुओं से और वरूण के पाश से मेरी रक्षा करें माया से ब्रह्मचारी रूप धारण करने वाले वामन भगवान् स्थल पर और विश्वरूप श्री त्रिविक्रमभगवान् आकाश में मेरी रक्षा करें 13

Let me be protected in the water by Fish incarnation,
From the animals of the sea and rope of Varuna,
Let me be protected in the Land by Vamana, the illusory boy,
And in the sky Trivikrama and viswaroopa forms.

दुर्गेष्वटव्याजिमुखादिषु प्रभुः पायान्नृसिंहोऽसुरयुथपारिः विमुञ्चतो यस्य महाट्टहासं दिशो विनेदुर्न्यपतंश्च गर्भाः 14


Durgesh atavyaji mukhadhishu Prabhu,
Payanrusimho asura yoodha pari,
Vimunchatho yasya mahattahasam,
Dhiso vinedhur anya pathangascha Garbha. 14

जिनके घोर अट्टहास करने पर सब दिशाएँ गूँज उठी थीं और गर्भवती दैत्यपत्नियों के गर्भ गिर गये थे , वे दैत्ययुथपतियों के शत्रु भगवान् नृसिंह किले ,जंगल , रणभूमि आदि विकट स्थानों में मेरी रक्षा करें 14

In forts, forests, dangerous places and in war,
Let me be protected by Lord Narasimha,
Who by his mighty roar shook all directions,
Broke open the army formation of Asura,
And caused pregnant asura women to abort.

रक्षत्वसौ माध्वनि यज्ञकल्पः स्वदंष्ट्रयोन्नीतधरो वराहः रामो द्रिकूटेष्वथ विप्रवासे सलक्ष्मणोSव्याद् भरताग्रजोSस्मान् 15

Rakshathwasou maadhwani yajna kalpa,
Swadamshtrayoth patha dharo varaha,
Ramo aadhrikooteshwadha vipravase,
Sa lakshmanovyadh bharathagrajo maam. 15

अपनी दाढ़ों पर पृथ्वी को उठा लेने वाले यज्ञमूर्ति वराह भगवान् मार्ग में ,परशुराम जी पर्वतों के शिखरों और लक्ष्मणजी के सहित भरत के बड़े भाई भगावन् रामचंद्र प्रवास के समय मेरी रक्षा करें 15

Let me be protected on my way by Lord Varaha,
Who is Yagna personified and who by his protruding teeth,
Lifted and carried the earth to safety,
Let me be protected on mountain top by Lord Parasurama
Let me be protected when I am abroad By lord Rama,
Who is elder brother of Bharatha and Lakshmana.

मामुग्रधर्मादखिलात् प्रमादान्नारायणः पातु नरश्च हासात् दत्तस्त्वयोगादथ योगनाथः पायाद् गुणेशः कपिलः कर्मबन्धात् 16

Mamugra dharmad akhilath pramadath,
Narayana pathu narascha hasath,
Dathaswa yogad adha Yoga natha,
Payadh Gunesa kapila karma bandath. 16

भगवान् नारायण मारण - मोहन आदि भयंकर अभिचारों और सब प्रकार के प्रमादों से मेरी रक्षा करें ऋषिश्रेष्ठ नर गर्व से , योगेश्वर भगवान् दत्तात्रेय योग के विघ्नों से और त्रिगुणाधिपति भगवान् कपिल कर्मबन्धन से मेरी रक्षा करें 16
Let me be protected by Lord Narayana,
When I am transgressing Dharma or committing mistakes,
Let me be protected from my pride by Sage Nara,
Let me protected by Sage Dathathreya,
For not engaging in Yoga, meditation and other activities
And let sage Kapila protect me from the bondage of Karma.

सनत्कुमारो वतु कामदेवाद्धयशीर्षा मां पथि देवहेलनात् देवर्षिवर्यः पुरूषार्चनान्तरात् कूर्मो हरिर्मां निरयादशेषात् 17

Sanath kumaro aavathu kama devath,
Hayanano maam padhi deva helanath,
Devarshi varya purusharcha nantharath,
Koormo harir maam nirayadh aseshath. 17

परमर्षि सनत्कुमार कामदेव से , हयग्रीव भगवान् मार्ग में चलते समय देवमूर्तियों को नमस्कार आदि न करने के अपराध से , देवर्षि नारद सेवापराधों से और भगवान् कच्छप सब प्रकार के नरकों से मेरी रक्षा करें 17

Let sage Sanath Kumara protect me from the cupid,
Let Lord Hayagreeva protect me while I am on travel,
As well as when I do action that insults the Devas,
Let Sage Narada protect me from sins of non worship of devas,
And let Hari who took the form of a tortoise,
Protect me from different types of hell.


धन्वन्तरिर्भगवान् पात्वपथ्याद् द्वन्द्वाद् भयादृषभो निर्जितात्मा यज्ञश्च लोकादवताज्जनान्ताद् बलो गणात् क्रोधवशादहीन्द्रः 18


Dhanwandarir bhagawan pathway padhyath,
Dwandwadh bhayad rushabho nirjithama,
Yajnascha loka devathaa janandath,
Balo ganath krodha vasadh aheendra. 18

भगवान् धन्वन्तरि कुपथ्य से ,जितेन्द्र भगवान् ऋषभदेव सुख-दुःख आदि भयदायक द्वन्द्वों से , यज्ञ भगवान् लोकापवाद से , बलरामजी मनुष्यकृत कष्टों से और श्रीशेषजी क्रोधवशनामक सर्पों के गणों से मेरी रक्षा करें 18

Let Lord Dhanwanthari protect me from unsuitable food,
Let Rishabha, the renounced soul protect me.
From fear of the contradictory dualities*,
Let Sage Yajna protect me from gossip of society,
Let Lord Balarama protect me from problems created by men,
And let Adhi sesha protect me from my anger.
*dualities like joy-sorrow, pain-pleasure etc.

द्वेपायनो भगवानप्रबोधाद् बुद्धस्तु पाखण्डगणात् प्रमादात् कल्किः कले कालमलात् प्रपातु धर्मावनायोरूकृतावतारः 19

Dwaipayano bhagwan aprabhodhad,
Budhasthu pashanda ganath pramadhath,,
Kalki kale kala malath prapath,
Dharma vanayoru kruthavathara. 19

भगवान् श्रीकृष्णद्वेपायन व्यासजी अज्ञान से तथा बुद्धदेव पाखण्डियों से और प्रमाद से मेरी रक्षा करें धर्म -रक्षा करने वाले महान अवतार धरण करने वाले भगवान् कल्कि पापबहुल कलिकाल के दोषों से मेरी रक्षा करें 19

Let Sage Vyasa protect me from lack of awakening,
Let sage Budha protect me from hypocrisy and ignorance,
Let Lord Kalki, who would be born to salvage Dharma,
Protect me from the evil effects and thoughts of Kali age.


मां केशवो गदया प्रातरव्याद् गोविन्द आसङ्गवमात्तवेणुः नारायण प्राह्ण उदात्तशक्तिर्मध्यन्दिने विष्णुररीन्द्रपाणिः 20

Maam kesavo gadhaya pratharavyad,
Govinda aasangava aartha venu,
Narayana prahana udatha shakthir,
Madhyandhine vishnurareendra pani. 20


प्रातःकाल भगवान् केशव अपनी गदा लेकर ,कुछ दिन चढ़ जाने पर भगवान् गोविन्द अपनी बांसुरी लेकर ,दोपहर के पहले भगवान् नारायण अपनी तीक्ष्ण शक्ति लेकर और दोपहर को भगवान् विष्णु चक्रराज सुदर्शन लेकर मेरी रक्षा करें 20

May I be protected in the morn by Kesava with his mace,
May I be protected two hours later By Govinda by his flute,
Two more hours later let Lord Narayana protect by his strength,
And at noon let Lord Vishnu protect me his holy wheel.

देवोSपराह्णे मधुहोग्रधन्वा सायं त्रिधामावतु माधवो माम् दोषे हृषीकेश उतार्धरात्रे निशीथ एकोSवतु पद्मनाभः 21

Devo aparahne Madhu hogra dhanwa,
Sayam thridhamavathu Madhwao maam,
Doshe Hrishi kesa, uthardha rather,
Niseedha yekovathu Padmanabha. 21


तीसरे पहर में भगवान् मधुसूदन अपना प्रच ण्ड धनुष लेकर मेरी रक्षा करें सांयकाल में ब्रह्मा आदि त्रिमूर्तिधारी माधव ,सूर्यास्त के बाद हृषिकेश ,अर्धरात्रि के पूर्व तथा अर्ध रात्रि के समय अकेले भगवान् पद्मनाभ मेरी रक्षा करें 21

After noon let me protected by Madhu with his great bow,
In the evening Let Madhwa in the form of trinity protect me,
Between dawn and midnight let Lord Hrishi kesa protect me,
And at midnight let Lord Padmanabha alone protect me.

श्रीवत्सधामापररात्र ईशः प्रत्यूष ईशोऽसिधरो जनार्दनः दामोदरोऽव्यादनुसन्ध्यं प्रभाते विश्वेश्वरो भगवान् कालमूर्तिः 22

Srivathsa dhamaapara rathra eesa,
Prathyoosha eesosidharo janardhana,
Dhamodharo avyad anusandhyam prabathe,
Visweswaro bhagwan kala moorthi. 22

रात्रि के पिछले प्रहर में श्रीवत्सलाञ्छन श्रीहरि , उषाकाल में खड्गधारी भगवान् जनार्दन , सूर्योदय से पूर्व श्रीदामोदर और सम्पूर्ण सन्ध्याओं में कालमूर्ति भगवान् विश्वेश्वर मेरी रक्षा करें 22

Let me protected by remaining part of the night,
By the Lord in whom Srivathsa lives,
Let me be protected just before dawn,
By Lord Janardhana who holds the sword,
Let me be protected at sun rise,
By Lord Damodara and just before morn,
Let Lord Visweshwara give me protection.


चक्रं युगान्तानलतिग्मनेमि भ्रमत् समन्ताद् भगवत्प्रयुक्तम् दन्दग्धि दन्दग्ध्यरिसैन्यमासु कक्षं यथा वातसखो हुताशः 23

Chakram yugantha analathigma nemi,
Bhramath samanthad Bhagvath prayuktham,
Dandhagdhi dangdhyari sainya masu,
Kaksham yadha vatha sakho huthasa. 23


सुदर्शन ! आपका आकार चक्र ( रथ के पहिये ) की तरह है आपके किनारे का भाग प्रलयकालीन अग्नि के समान अत्यन्त तीव्र है आप भगवान् की प्रेरणा से सब ओर घूमते रहते हैं जैसे आग वायु की सहायता से सूखे घास-फूस को जला डालती है , वैसे ही आप हमारी शत्रुसेना को शीघ्र से शीघ्र जला दीजिये , जला दीजिये 23

Oh holy Wheel,your edges are like the raging fire of deluge,
You are sent by the God and rotate and travel everywhere,
And so like the fire with the help of wind,
Burns in to ashes the dried up wood of a forest,
Speedily and speedily burn and burn all my enemies.

गदे शनिस्पर्शनविस्फुलिङ्गे निष्पिण्ढि निष्पिण्ढ्यजितप्रियासि कूष्माण्डवैनायकयक्षरक्षोभूतग्रहांश्चूर्णय चूर्णयारीन् 24


Gadhe asani sparsana visphulinge,
Nishpindi nishpindyajitha priyasi,
Koosmanda vainayaka yaksha raksho,
Bhootha graham choornaya choornyarin. 24

कौमुद की गदा ! आपसे छूटने वाली चिनगारियों का स्पर्श वज्र के समान असह्य है आप भगवान् अजित की प्रिया हैं और मैं उनका सेवक हूँ इसलिए आप कूष्माण्ड, विनायक , यक्ष , राक्षस , भूत और प्रेतादि ग्रहों को अभी कुचल डालिये , कुचल डालिये तथा मेरे शत्रुओं को चूर - चूर कर दिजिये 24

Oh mace, the spark raising touches of yours,
Are unbearable like the touch of Vajra,
And you are dear to the invincible lord and his servant,
And so please powder and powder again,
Evil spirits, Yakshas, Rakshasas and all my enemies

त्वं यातुधानप्रमथप्रेतमातृपिशाचविप्रग्रहघोरदृष्टीन् दरेन्द्र विद्रावय कृष्णपूरितो भीमस्वनोऽरेर्हृदयानि कम्पयन् 25

Thwam yathu dhana pramadha pretha mathru,
Pisacha vipra graham gora drushteen,
Dharendra vidhravaya Krishna pooritho,
Bhima swano arer hrudhayani kambhayan. 25

शङ्खश्रेष्ठ ! आप भगवान् श्रीकृष्ण के फूँकने से भयंकर शब्द करके मेरे शत्रुओं का दिल दहला दीजिये एवं यातुधान , प्रमथ , प्रेत , मातृका , पिशाच तथा ब्रह्मराक्षस आदि भयावने प्राणियों को यहाँ से झटपट भगा दीजिये 25

Oh Conch, when lord Krishna blows in you,
You create a huge and loud sound and confuse my enemies,
And drive away ghouls, devils, ghosts, Pramadhas,
Brahma Rakshas and other fearful beings.

त्वं तिग्मधारासिवरारिसैन्यमीशप्रयुक्तो मम छिन्धि छिन्धि
चर्मञ्छतचन्द्र छादय द्विषामघोनां हर पापचक्षुषाम् 26

Thwam thigma dharasi varari sainyam,
Eesa prayuktha mama chindhi, chindhi,
Chakshoomshi charman satha chandra chadhaya,
Dwishamaghonaam hara papa chakshusham. 26

भगवान् की श्रेष्ठ तलवार ! आपकी धार बहुत तीक्ष्ण है आप भगवान् की प्रेरणा से मेरे शत्रुओं को छिन्न-भिन्न कर दिजिये भगवान् की प्यारी ढाल ! आपमें सैकड़ों चन्द्राकार मण्डल हैं आप पापदृष्टि पापात्मा शत्रुओं की आँखे बन्द कर दिजिये और उन्हें सदा के लिये आन्धा बना दीजिये 26

Oh holy sword, Be sent by the Lord himself,
And cut and cut my enemy army in to pieces,
Oh shield of the lord,shining like hundred moons,
Please make my enemies with full of sins look blind.

यन्नो भयं ग्रहेभ्यो भूत् केतुभ्यो नृभ्य एव च सरीसृपेभ्यो दंष्ट्रिभ्यो भूतेभ्योंऽहोभ्य एव वा 27

सर्वाण्येतानि भगन्नामरूपास्त्रकीर्तनात् प्रयान्तु संक्षयं सद्यो ये नः श्रेयः प्रतीपकाः 28

Yanna bhayam grahebhyobhooth kethubhyo nrubhya eva cha,
Saree srupebhyo dhamshtribhyo bhoothabyohebhya yeva cha. 27

Sarvanyethani bhagavan nama roopasthra keerthanath,
Prayanthu samkshayam sadhyo ye na sreya pratheepika. 28

सूर्य आदि ग्रह , धूमकेतु (पुच्छल तारे ) आदि केतु , दुष्ट मनुष्य , सर्पादि रेंगने वाले जन्तु , दाढ़ोंवाले हिंसक पशु , भूत-प्रेत आदि तथा पापी प्राणियों से हमें जो - जो भय हो और जो -जो हमारे मङ्गल के विरोधि हों --- वे सभी भगावान् के नाम , रूप तथा आयुधों का कीर्तन करने से तत्काल नष्ट हो जाँय 27 - 28

The fear that we have due to planets, comets, Kethu and kings,
The fear that we had from teethed serpents, ghosts and from sin,
And the fear that prevent our well being may all be destroyed,
Oh God, by the praise of your names and weapons.

गरूड़ो भगवान् स्तोत्रस्तोभश्छन्दोमयः प्रभुः रक्षत्वशेषकृच्छ्रेभ्यो विष्वक्सेनः स्वनामभिः 29

Garudo Bhagawan sthothra sthobha chandho maya Prabhu,
Rakshathwa sesha kruchsrebhyo vishwaksena swa namabhi. 29

बृहद् , रथ न्तर आदि सामवेदीय स्तोत्रों से जिनकी स्तुति की जाती है , वे वेदमूर्ति भगवान् गरूड़ और विष्वक्सेनजी अपने नामोच्चारण के प्रभाव से हमें सब प्रकार की विपत्तियों से बचायें 29

The Garuda, who is being praised by great musical stotras of Vedas,
Who is a god and the lord of the world, may protect me from all troubles,
By singing of his names as well as that of the Lord Vishwak sena.

सर्वापद्भ्यो हरेर्नामरूपयानायुधानि नः बुद्धिन्द्रियमनः प्राणान् पान्तु पार्षदभूषणाः 30

Savapadbhyo harer nama roopayanaayudhani na.
Budheendriya mana praanan paanthu parshadha bhooshana. 30

श्रीहरि के नाम , रूप, वाहन , आयुध और श्रेष्ठ पार्षद हमारी बुद्धि , इन्द्रिय , मन और प्राणों को सब प्रकार की आपत्तियों से बचाये 30

Let the names and forms of Vishnu, his steed,
His weapons, and important assistants may protect,
My mind, senses and soul, from all the dangers and sins.

यथा हि भगवानेव वस्तुतः सद्सच्च यत् सत्यनानेन नः सर्वे यान्तु नाशमुपाद्रवाः 31

Yadhahi bhagwan eva vasthutha sad sachayath,
Sathye nanena na sarve yanthu nasamupadrawa. 31

जितना भी कार्य अथवा कारण रूप जगत है , वह वास्तव में भगवान् ही है इस सत्य के प्रभाव से हमारे सारे उपद्रव नष्ट हो जाँय 31

The truth that God is all beings and things,
May destroy all the troubles that we face.

यथैकात्म्यानुभावानां विकल्परहितः स्वयम् भूषणायुद्धलिङ्गाख्या धत्ते शक्तीः स्वमायया 32

तेनैव सत्यमानेन सर्वज्ञो भगवान् हरिः पातु सर्वैः स्वरूपैर्नः सदा सर्वत्र सर्वगः 33

Yadaikathmanu bhavanam vikalpa rahitha swayam,
Bhooshanuyudha lingakhya dathe shakthi swa mayaya. 32

Thenaiva sathya manen sarvajno Bhagwan Hari,
Pathu sarvai swaroopairna sada sarvathra sarvaga. 33

जो लोग ब्रह्म और आत्मा की एकता का अनुभव कर चुके हैं , उनकी दृष्टि में भगवान् का स्वरूप समस्त विकल्पों से रहित है - भेदों से रहित हैं फिर भी वे अपनी माया शक्ति के द्वारा भूषण , आयुध और रूप नामक शक्तियों को धारण करते हैं यह बात निश्चित रूप से सत्य है इस कारण सर्वज्ञ , सर्वव्यापक भगवान् श्रीहरि सदा -सर्वत्र सब स्वरूपों से हमारी रक्षा करें 32-33

Those great savants who think, that God does not have any forms,
And his weapons and ornaments are only symbols without power,
And due to this truth, the God Hari is everywhere,
And let him protect me always and everywhere..

विदिक्षु दिक्षूर्ध्वमधः समन्तादन्तर्बहिर्भगवान् नारसिंहः प्रहापयँल्लोकभयं स्वनेन ग्रस्तसमस्ततेजः 34

Vidikshu dikshoordhwamadha Samantha,
Anthar bahir bhagwan narasimha,
Praha bhayam loka bhayam swanena,
Swathejasa grastha samastha theja. 34

जो अपने भयंकर अट्टहास से सब लोगों के भय को भगा देते हैं और अपने तेज से सबका तेज ग्रस लेते हैं , वे भगवान् नृसिंह दिशा -विदिशा में , नीचे -ऊपर , बाहर -भीतर - सब ओर से हमारी रक्षा करें 34

Let the Lord Narasimha who due to his power,
Destroyed elephants, serpents and other beings
And saved Prahladha, and removed the fear of the world,,
Protect me in all directions and non directions,
Top and below, inside and outside and in all places.

मघवन्निदमाख्यातं वर्म नारयणात्मकम् विजेष्यस्यञ्जसा येन दंशितोऽसुरयूथपान् 35

Maghavan idham aakhyatham varma narayanathmakam,
Vijeshya syanjasa yena damsitho sura yoodhapan. 35

देवराज इन्द्र ! मैने तुम्हें यह नारायण कवच सुना दिया है इस कवच से तुम अपने को सुरक्षित कर लो बस , फिर तुम अनायास ही सब दैत्य - यूथपतियों को जीत कर लोगे 35

Oh Indra, thus I have told you, the great armour of Narayana,
And using this you protect yourselves and easily,
Defeat the commanders of the army of Rakshasas.

एतद् धारयमाणस्तु यं यं पश्यति चक्षुषा पदा वा संस्पृशेत् सद्यः साध्वसात् स विमुच्यते 36

Yethad dharayamanasthu yam yam pasyathi chakshusha,
Pada vaa samsprusethsadhya saadvasath sa vimuchyathe. 36

इस नारायण कवच को धारन करने वाला पुरूष जिसको भी अपने नेत्रों से देख लेता है अथवा पैर से छू देता है , तत्काल समस्त भयों से से मुक्त हो जाता है 36

If he who wears his armour sees any one by his eyes,
Or even touches him by his feet, that man,
Would be able to get rid of all his fears.

न कुतश्चित भयं तस्य विद्यां धारयतो भवेत् राजदस्युग्रहादिभ्यो व्याघ्रादिभ्यश्च कर्हिचित् 37

Na kuthaschid bhayam thasya vidhyam dharayatho bhaved.,
Raja dasyu grahadhebhyo vyagradhibhyascha karhichith. 37

जो इस वैष्णवी विद्या को धारण कर लेता है , उसे राजा, डाकू , प्रेत , पिशाच आदि और बाघ आदि हिंसक जीवों से कभी किसी प्रकार का भय नहीं होता 37

He who wears this armour will never have any fear,
From king, enemies, planets and animals like the tiger.

इमां विद्यां पुरा कश्चित् कौशिको धारयन् द्विजः योगधारणया स्वाङ्गं जहौ स मरूधन्वनि 38

Imam vidhyam pura kaschid kaushiko dharayan dwija,
Yogadharanaya swa angam jahow marudhanwani. 38

देवराज! प्राचीनकाल की बात है , एक कौशिक गोत्री ब्राह्मण ने इस विद्या को धारण करके योगधारणा से अपना शरीर मरूभूमि में त्याग दिया 38

Long time ago, this knowledge was worn by a Brahmin,
From Koushika Gothra and he gave up his life in a desert

तस्योपरि विमानेन गन्धर्वपतिरेकदा ययौ चित्ररथः स्त्रीर्भिवृतो यत्र द्विजक्षयः 39

Thasyopari vimanena gandharwa pathi rekhadha,
Yayou chithra radha sthreebhir vrutho yathra dwijakshaya. 39

जहाँ उस ब्राह्मण का शरीर पड़ा था , उसके उपर से एक दिन गन्धर्वराज चित्ररथ अपनी स्त्रियों के साथ विमान पर बैठ कर निकले 39

A gandharwa called Chithra radha was travelling in a plane.
Along with his ladies, where the Brahmins body was lying.

गगनान्न्यपतत् सद्यः सविमानो ह्यवाक् शिराः स वालखिल्यवचनादस्थीन्यादाय विस्मितः प्रास्य प्राचीसरस्वत्यां स्नात्वा धाम स्वमन्वगात् 40

Gagamam anya pada sadhya savimano hyavak sira,
Sa balakhilya vachanad asthhenyadhya vismitha,
Prasya prachee saraswathyam snathwa dhama swa manwagadh. 40

वहाँ आते ही वे नीचे की ओर सिर किये विमान सहित आकाश से पृथ्वी पर गिर पड़े इस घटना से उनके आश्चर्य की सीमा न रही जब उन्हें बालखिल्य मुनियों ने बतलाया कि यह नारायण कवच धारण करने का प्रभाव है , तब उन्होंने उस ब्राह्मण देव की हड्डियों को ले जाकर पूर्ववाहिनी सरस्वती नदी में प्रवाहित कर दिया और फिर स्नान करके वे अपने लोक को चले गये!

At that spot his plane stopped and he fell there along with his ladies,
And he was perplexed and was advised by the sages called Balakhilya,
And obeying their advice, took the bones of the Brahmin,
And put it in the river Saraswathi, took bath and went back to his home.
(Even a man died in a desert, attained salvation because of this armour.)

श्रीशुक उवाचय इदं शृणुयात् काले यो धारयति चादृतः तं नमस्यन्ति भूतानि मुच्यते सर्वतो भयात् 41

Sri Shuka Uvacha:
Ya idham srunuyath kale yo dharayathi chadhrutha,
Tham namasyanthi bhoohani muchyathe sarvatho bhayath. 41

श्रीशुकदेवजी कहते हैं - परिक्षित् जो पुरूष इस नारायण कवच को समय पर सुनता है और जो आदर पूर्वक इसे धारण करता है ,उसके सामने सभी प्राणी आदर से झुक जाते हैं और वह सब प्रकार के भयों से मुक्त हो जाता है 41

Sri Shuka said:
He who wears or hears this armour of Narayana,
Would be saluted by all beings and he would get rid of all fears.

एतां विद्यामधिगतो विश्वरूपाच्छतक्रतुः त्रैलोक्यलक्ष्मीं बुभुजे विनिर्जित्यऽमृधेसुरान् 42

Yetham vidhyamadhi gatho viswaroopa chatha kruthu,
Trilokya lakshmeem bubhuje vinirjithya mrude asuran. 42

परीक्षित् ! शतक्रतु इन्द्र ने आचार्य विश्वरूपजी से यह वैष्णवी विद्या प्राप्त करके रणभूमि में असुरों को जीत लिया और वे त्रैलोक्यलक्ष्मी का उपभोग करने लगे!

Learning this knowledge from Viswaroopa, Indra,
Won in the battle over all asuras and
Got the blessings of wealth of the three worlds.

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Wednesday, April 22, 2020

April 22, 2020

क्या स्त्रियों की दयनीय दशा के लिए पुरुष जिम्मेदार है?

क्या स्त्रियों की दयनीय दशा के लिए पुरुष जिम्मेदार है? 




समाज "पुरुष प्रधान" बना इसके लिये कौन जिम्मेदार है?

उत्तर: आदि काल से स्त्रियों ने उन्ही पुरुषों को चुना है, जिन्हे वो खुद से विशेष समझती हैं। जैसे सतयुग ज्ञान प्रधान था, उस समय की स्त्रियाँ भी ज्ञान के पींछे भागती थी। इस वजह से उस समय के चक्रवर्ती राजाओं की क्षत्राणी पुत्रियाँ भी ब्राह्मण और ऋषियों के सामने समर्पण करके उनसे विवाह करके उन्ही के आश्रमो मे रहने लगती।

 जैसे अनुुसुइया, अहिल्या आदि सभी राजकन्याओं ने ऋषियों से विवाह किया। इन सबकी देवियों के रूप मे पूजी जाती हैं। इसके बाद उनकी धारणायें बदलती गयी। लेकिन महत्वपूर्ण ये है कि उन्होने अपने अनुरूप उन्ही पुरुषों के सामने समर्पण किया जो उन्हे खुद से विशेष लगता और जिसे वो अपनी इच्छाओं के पूरा करने मे सहाँयक समझती। सृष्टि के आदि मे भी जब देवी दुर्गा ने तीन देवियों को प्रकट किया और कहा तुम अपनी इच्छा से तीनो देवों मे किसी एक से विवाह कर लो। ब्रह्मज्ञानी ब्रह्मा को ज्ञान की आवश्यकता नही है फिर भी देवी सरस्वती ने उनसे विवाह किया। शंकर जी सर्वशक्तिमान विनाशक हैं तो देवी पार्वती ने उनके समर्पण कर दिया। समुद्र मंथन के समय देवी लक्ष्मी के सामने अनेकों देवताओं ने विवाह की इच्छा की परंतु लक्ष्मी ने भगवान विष्णु के सामने समर्पण किया। यहाँ पर भगवान विष्णु बिल्कुल उदासीन थे। उन्हे नाम मात्र को भी ऐसा कुछ नही लगा कि लक्ष्मी मे कोई विशेषता है। सभी युगों में यही हुआ।


 जब उन्हें विवाह के लिए पुरुष चुनने को अधिकार मिला उन्होंने उसी को चुना जो उनसे विशेष था और जो उन्हें पसंद था। आज भी पढ़ा लिखा अच्छे पद प्रतिष्ठा वाला पुरुष किसी साधारण घर की अनपढ लड़की से विवाह कर लेते हैं। परंतु लड़कियों को उनसे ज्यादा पढ़ा- लिखा, उनसे बड़े पद वाला लड़का चाहिए। ऐसे ही सभी स्त्रियाँ अपनी नजर मे विशेष पुरुष के सामने समर्पण करके उनसे विवाह किया। इस प्रकार आदिकाल से स्त्रियों ने उन पुरुषों से विवाह किया जिनसे वो पराजित हो गयी। स्त्रियों ने उन पुरुषों से विवाह नही किया जो उनसे पराजित थे। अर्थात् जो पुरुष उन्हे विशेष समझते थे और उनके सौन्दर्य, प्रेम, ज्ञान आदि से आकर्षित होकर उनके सामने समर्पण कर देते थे। उन पुरुषों को वो महत्व नही देती और उनकी भावनाओं का स्त्रियों के सामने कोई महत्व नही रहा।


 इस प्रकार समाज 'पुरुष प्रधान' होता गया क्यूँकि विशेष स्त्रियाँ अपने से विशेष पुरुषों के सामने पराजित होकर उनसे विवाह करती गयी। अगर स्त्रियाँ अपने से पराजित पुरुषों को महत्व देकर उनसे विवाह करती तो समाज "स्त्री प्रधान" हो जाता है। आज अगर समाज मे स्त्रियों की दशा ऊपर उठी है तो उसकी वजह यही है कि 2 से 4 प्रतिशत स्त्रियाँ उनसे विवाह कर रही हैं जो उनसे पराजित हो गये हैं और वो उनसे पराजित नही है। सूरज के सामने चाँद का अस्तित्व क्षीण हो जाता है। अगर स्त्रियाँ खुद को चाँद समझकर अधिक प्रकाश वाले सूरज को चुनेंगी तो समाज "पुरुष प्रधान" ही रहेगा। इंदिरा गाँधीजी ने फ़िरोज़ खान से विवाह किया तो क्या इंदिरा के पद प्रतिष्ठा मे फर्क पड़ा? क्या फ़िरोज़ खान पुरुष प्रधान बना पाए? अगर पुरुष प्रधान समाज़ न बने और स्त्री प्रधान समाज बन जाए तो स्त्रियाँ अपने से कम पढ़े लिखे, अपने से कम पद प्रतिष्ठा वाले, अपने उपर मर मिटने वाले लड़कों से विवाह करें।

इस आर्टिकल का उद्देश्य किसी की भावना को आहत करना नहीं है। परंतु अगर आप पढ़कर इस पर ध्यान देंगे तो इसक सत्यता को पूर्णतः नकारा नहीं जा सकता।

द्वारा
लवलेश गौतम

Sunday, April 5, 2020

April 05, 2020

Leonardo Dicarpio Horoscope Analysis

Leonardo Dicarpio Horoscope Analysis




Date of Birth:- November 11, 1974 (Monday)

Time: 02: 47 AM

Age: - (as in 2019) 45 Years

Birthplace:- Los Angeles, California, U.S.

Leonardo Dicsrpio Numerology

Driver Number: - 2

Strength:-
Co-operation, harmony, love, partnership, diplomacy.

Weakness: -
Over sensitive, tactlessness, timidity, vacillation.


Conductor Number: - 7

Strength: -
Spirituality, occult, analysis, scientific research, wisdom.

Weakness: -
 Selfishness, laziness, aggressiveness, egotism.

* Mulank 2 and Bhagyank 7 Supports him in hollywood industry.  Same combination has Bollywood Actor Sharukh Khan.

* He has complete memory plane, so he is a well known person, he will find himself in a controversy most of the time. He is easily misunderstood by others. He express his feelings in acting, writing,  dancing, painting or any art.

* He is sensitive and he has intuition powers. He is a moody person.

* He is practical, hardworking and balanced. He love music and handicrafts.

* He is ambitious, charitable and he has strong urge to improve himself.

* Complete memory plane gives him a lot of wealth and fame

* Missing 3, 6 and 5 not good for marriage, SO he is still unmarried.




Prediction based YOUR LAGNA: -


You may have very few close friends. You should avoid involvement in challenging matters. You have an inborn talent to keep the things neat and orderly. You are a person who likes to invest your money in less risky zones like depositing it in bank, etc. You should avoid creating big issues on others about small defects. You will include some words carefully and intelligently in your conversations for better acceptability. Business is a good option for your career, but you would not trust anyone beyond a particular point. You must keep some distance from every one. You are a calm and friendly person. So others will consider you as a person they trust. You will not be involved in faith in GOD and prayers. You have a curiosity for learning new subjects. You will respond to a subject or situation only when you have understand it. You get help from others (even from unexpected ones). In any matter you don’t like to keep an obligation to others. You will find multiple sources of income. Moreover, you will be successful in you efforts. Your behavior is much liked by others. There will be advances of financial position and other matters after your marriage .

DiCaprio was raised as a Catholic in California, but has no religion, although he has expressed an interest in Buddhism and says he is not an atheist. In an interview, he said, “I’m not an atheist, I’m agnostic."-Leonardo DiCaprio

Predictions based ON BIRTH STAR: -


you will get knowledge from different subject which you don’t have any connection with at all. You will have lot of general knowledge. But is very difficult for you to excel in higher education, you can find suitable solution to other problems.And you can be a good adviser. It is very difficult to get achievement in every activities that you are involved in. You will get happy marriage life, you will have pleasing behavior . So you will be loved nad respected by all, even strangers also. Your smile have special attractive power. And this is the another reason why people have an attraction to you. You will get good faith and acceptance widely in public activities, your heart is full of Sympathy , kindness and down to earth nature to ward every one . Cheating any one will be impossible for you .But in some case you will be rewarded with hatred and dislike by you sincerely helped. You like to see every thing nice and clean and in order. You will do things in properly when it involved an activity with others. You do not like to spend money for luxuries, You policy toward money spending is spend any amount of money according to necessity. You don’t like your servant or associate to do things with out order and neatness. You will angrily react to it, then correct their mistakes. In your life good and bad times comes one by one regularly Some thing in your life ( for example parenthood ) is going very smoothlyYou may have to face unexpected problems, which may hassle you without any way out in sight. Then unexpectedly as well, you will get solution for that problem. You will show good ability and sincerity in your profession. You can hard work for your success. Thus, you can make darling Of your superior officers. You will not do anything to put your dignity and social status at stake. You can not get any favors from other by some how pleasing them.

Prediction based on planets: -


Sun IN 2 Th house: -

Your father will have step by step advancement in his life after your birth.. You will have attractive look, which will bring special attention from othersYou will have some serious disagreement with your relatives; You will have some problem in doing attractive speeches , and voice may not that good.

Moo IN 1 Th house: -

This planetary position gives you good body shape. There can be Some difficulties due to diseases. Most of the decisions can changeable.your coversation skill suffered because of this planetary combination.

Mar IN 2 Th house: -

You have to eat tasteless and unclean food. You have sudden bouts of anger. You may speak very harshly if the need arises. You will jump to conclusions and make decisions without analyzing the facts. There may be problems for your hard earned money to eventually reach you. Most of the problems are unexpected and abnormal.

Mer IN 2 Th house: -

Exhibits willpower and power through spoken words and achieves much success in life. Kind and considerate. Great successes are found in the fields of education, sale, scientific matters. Very active and able. Achieves success mainly in education, word, writings etc.

Jup IN 6 Th house: -

You will have to face a lot of problems due to ill health. This planetary position is particularly not good for your uncle. You should avoid taking financial loans as you may struggle to repay.

Ven IN 2 Th house: -

You have inherent talent in any form of art. This art form may be literature, poetry, music or acting. This planetary position may diminish your eyesight. You may be born in a superior family. You will have good food and good clothes. You will be known for your conversational skills. You can use this skill for making money.

Sat IN 10 Th house: -

You will show laziness in profession because of this planetary position. You will become success in life through your hard work. You will get respect, importance, and acceptability from your profession but only very lately. You will have some very unexpected downfall in your profession.

Rah IN 3 Th house: -

You will have long life and financial gains through this planetary position. This is not good for younger sibling. You will work hard for your success. You do not have fear about your opponents. You are brave enough to do any adventurous activities.

Ket IN 9 Th house: -

These planetary positions indicate benefits from the father. You have special talent to please people from other religion. So you can become famous among them. You will be very brigh,human lover and interested in travel. You will get praise even from your opponet.

Special Combination in his horoscope: -

* Lord of 11th house in ascendant, lot of income and fame from acting.

* Dharmadhipati Karmadhipati Yoga in 2nd house shows lot of wealth & fame.

* 5th Lord in 10th house, Moon in ascendant shows career in acting.

* Moon in ascendant and afflicted venus shows, many girlfriends.

* Lord of 7th house is in 6th house,  shows late marriage, no marriage or divorce.

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