गोस्वामी श्री तुलसी दास
जी ने श्री राम चरित मानस
की रचना के समस्त मानव जाति पर जो उपकार किया उसे
कभी भुलाया नहीं जा सकता है.भक्ति
का मार्ग दिखाया, परिवार में रहने का आदर्श बताया,समाज के
प्रत्येक सम्बन्ध का निर्वाह करने का सुगम व सरल मार्ग
बताया कि पिता-पुत्र,पति-पत्नी,स्वामी-
सेवक,भाई-भाई आदि समस्त रिश्तों की व्याख्या कर
समाज को यह निर्देश दिया कि यदि समाज श्री राम के
चरित के अनुसार जीवन यापन अर्थात मानस
को श्री राम के चरित के अनुसार रिश्तों का पालन
करता है तो उसे समाज में
किसी भी प्रकार का कष्ट
नहीं होगा. तथा भक्ति मार्ग द्वारा यह निर्देश
दिए मानस की प्रत्येक चौपाई,दोहा,सोरठा छंद
सभी अपने आप में मन्त्र का रूप है
जो कि कभी कीलित
नहीं है अन्य मंत्रो में कीलन
आदि कई प्रकार के शाप आदि बाधाए है लेकिन
श्री राम चरित मानस में सरल भाषा का प्रयोग कर
हम अपने जीवन का अभाव
की पूर्ति कर सकने में समर्थ होते है
श्री राम चरित मानस में वर्णित मन्त्र आज लिख
रहा हूं......
ऐश्वर्य प्राप्त करने के लिए
‘माता सीता की स्तुति’ का नित्य प्रातःकाल
सूर्योदय के समय श्री राम जी के चित्र के
सामने लाल पुष्प रख कर श्रद्धा-विश्वासपूर्वक पाठ करें।
“उद्भवस्थितिसंहारकारिणीं
क्लेशहारिणीम्।
सर्वश्रेयस्करीं सीतां नतोऽहं
रामवल्लभाम्।।”
दुःख का नाश करने के लिए स्तुति
यह श्लोक श्री राम जी को हाथ जोड़
कर तथा सिर पर पीला वस्त्र धारण कर के करने से
समस्त दुखों का नाश होता है.
“यन्मायावशवर्तिं विश्वमखिलं ब्रह्मादिदेवासुरा
यत्सत्वादमृषैव भाति सकलं रज्जौ यथाहेर्भ्रमः।
यत्पादप्लवमेकमेव हि भवाम्भोधेस्तितीर्षावतां
वन्देऽहं तमशेषकारणपरं रामाख्यमीशं हरिम्।।”
“ यस्याङ्के च विभाति भूधरसुता देवापगा मस्तके
भाले बालविधुर्गले च गरलं यस्योरसि व्यालराट ,
सोऽयं भूतिविभूषणः सुरवरः सर्वाधिपः सर्वदा शर्वः
सर्वगतः शिवः शशिनिभः श्रीशङ्करः पातु माम ||”
अपने पारिवारिक जीवन को सुखमय बनाने के लिए
श्रीसीता जी तथा
श्री राम जी का भाव पूर्ण नित्य पाठ करें।
“नीलाम्बुजश्यामलकोमलाङ्गं
सीतासमारोपितवामभागम,
पाणौ महासायकचारुचापं नमामि रामं रघुवंशनाथम ||”
अपने व अपने परिवार की उन्नति तथा घर में सुख
सम्पदा प्राप्त करने हेतु
श्री अत्रि मुनि द्वारा रचित ‘श्रीराम-स्तुति’
का नित्य प्रातः व सायकाल दीप जला कर पाठ करें।
“नमामि भक्त वत्सलं । कृपालु शील कोमलं ॥
भजामि ते पदांबुजं । अकामिनां स्वधामदं ॥
निकाम श्याम सुंदरं । भवाम्बुनाथ मंदरं ॥
प्रफुल्ल कंज लोचनं । मदादि दोष मोचनं ॥
प्रलंब बाहु विक्रमं । प्रभोऽप्रमेय वैभवं ॥
निषंग चाप सायकं । धरं त्रिलोक नायकं ॥
दिनेश वंश मंडनं । महेश चाप खंडनं ॥
मुनींद्र संत रंजनं । सुरारि वृंद भंजनं ॥
मनोज वैरि वंदितं । अजादि देव सेवितं ॥
विशुद्ध बोध विग्रहं । समस्त दूषणापहं ॥
नमामि इंदिरा पतिं । सुखाकरं सतां गतिं ॥
भजे सशक्ति सानुजं । शची पतिं प्रियानुजं ॥
त्वदंघ्रि मूल ये नराः । भजंति हीन मत्सरा ॥
पतंति नो भवार्णवे । वितर्क वीचि संकुले ॥
विविक्त वासिनः सदा । भजंति मुक्तये मुदा ॥
निरस्य इंद्रियादिकं । प्रयांति ते गतिं स्वकं ॥
तमेकमभ्दुतं प्रभुं । निरीहमीश्वरं विभुं
॥
जगद्गुरुं च शाश्वतं । तुरीयमेव केवलं ॥
भजामि भाव वल्लभं । कुयोगिनां सुदुर्लभं ॥
स्वभक्त कल्प पादपं । समं सुसेव्यमन्वहं ॥
अनूप रूप भूपतिं । नतोऽहमुर्विजा पतिं ॥
प्रसीद मे नमामि ते । पदाब्ज भक्ति देहि मे ॥
पठंति ये स्तवं इदं । नरादरेण ते पदं ॥
व्रजंति नात्र संशयं । त्वदीय भक्ति संयुता ॥”
शत्रुओं तथा अपने प्रतिद्वंद्वी को परास्त करने
हेतु
“श्याम तामरस दाम शरीरं । जटा मुकुट परिधन
मुनिचीरं ॥
पाणि चाप शर कटि तूणीरं । नौमि निरंतर
श्रीरघुवीरं ॥१॥
मोह विपिन घन दहन कृशानुः । संत सरोरुह कानन भानुः ॥
निशिचर करि वरूथ मृगराजः । त्रातु सदा नो भव खग बाजः ॥२॥
अरुण नयन राजीव सुवेशं । सीता नयन
चकोर निशेशं ॥
हर ह्रदि मानस बाल मरालं । नौमि राम उर बाहु विशालं ॥३॥
संशय सर्प ग्रसन उरगादः । शमन सुकर्कश तर्क विषादः ॥
भव भंजन रंजन सुर यूथः । त्रातु सदा नो कृपा वरूथः ॥४॥
निर्गुण सगुण विषम सम रूपं । ज्ञान गिरा गोतीतमनूपं
॥
अमलमखिलमनवद्यमपारं । नौमि राम भंजन महि भारं ॥५॥
भक्त कल्पपादप आरामः । तर्जन क्रोध लोभ मद कामः ॥
अति नागर भव सागर सेतुः । त्रातु सदा दिनकर कुल केतुः ॥६॥
अतुलित भुज प्रताप बल धामः । कलि मल विपुल विभंजन नामः ॥
धर्म वर्म नर्मद गुण ग्रामः । संतत शं तनोतु मम रामः ॥७॥”
or-bidi� k o : � j �Dg �िविक्त वासिनः सदा ।
भजंति मुक्तये मुदा ॥
निरस्य इंद्रियादिकं । प्रयांति ते गतिं स्वकं ॥
तमेकमभ्दुतं प्रभुं । निरीहमीश्वरं विभुं
॥
जगद्गुरुं च शाश्वतं । तुरीयमेव केवलं ॥
भजामि भाव वल्लभं । कुयोगिनां सुदुर्लभं ॥
स्वभक्त कल्प पादपं । समं सुसेव्यमन्वहं ॥
अनूप रूप भूपतिं । नतोऽहमुर्विजा पतिं ॥
प्रसीद मे नमामि ते । पदाब्ज भक्ति देहि मे ॥
पठंति ये स्तवं इदं । नरादरेण ते पदं ॥
व्रजंति नात्र संशयं । त्वदीय भक्ति संयुता ॥”
सर्व सिद्धि हेतु
“अतुलितबलधामं हेमशैलाभदेहं
दनुजवनकृशानुं ज्ञानिनामग्रगण्यम् ।
सकलगुणनिधानं वानराणामधीशं
रघुपतिप्रियभक्तं वातजातं नमामि।।”
समस्त प्रकार की बाधाए,कष्ट, कर्जा, रोग
तथा मानसिक पीड़ा को दूर करने हेतु
॥ श्रीरुद्राष्टकम् ॥
नमामीशमीशान निर्वाणरूपं विभुं व्यापकं
ब्रह्मवेदस्वरूपम् ।
निजं निर्गुणं निर्विकल्पं निरीहं चिदाकाशमाकाशवासं
भजेऽहम् ॥ १॥
निराकारमोंकारमूलं तुरीयं गिरा ज्ञान
गोतीतमीशं गिरीशम् ।
करालं महाकाल कालं कृपालं गुणागार संसारपारं नतोऽहम् ॥ २॥
तुषाराद्रि संकाश गौरं गभीरं मनोभूत
कोटिप्रभा श्री शरीरम् ।
स्फुरन्मौलि कल्लोलिनी चारु गङ्गा लसद्भालबालेन्दु
कण्ठे भुजङ्गा ॥ ३॥
चलत्कुण्डलं भ्रू सुनेत्रं विशालं प्रसन्नाननं
नीलकण्ठं दयालम् ।
मृगाधीशचर्माम्बरं मुण्डमालं प्रियं शंकरं सर्वनाथं
भजामि ॥ ४॥
प्रचण्डं प्रकृष्टं प्रगल्भं परेशं अखण्डं अजं भानुकोटिप्रकाशम् ।
त्रयः शूल निर्मूलनं शूलपाणिं भजेऽहं
भवानीपतिं भावगम्यम् ॥ ५॥
कलातीत कल्याण
कल्पान्तकारी सदा सज्जनानन्ददाता पुरारी ।
चिदानन्द संदोह मोहापहारी प्रसीद
प्रसीद प्रभो मन्मथारी ॥ ६॥
न यावत् उमानाथ पादारविन्दं भजन्तीह लोके परे
वा नराणाम् ।
न तावत् सुखं शान्ति सन्तापनाशं प्रसीद
प्रभो सर्वभूताधिवासम् ॥ ७॥
न जानामि योगं जपं नैव पूजां नतोऽहं सदा सर्वदा शम्भु तुभ्यम् ।
जरा जन्म दुःखौघ तातप्यमानं
प्रभो पाहि आपन्नमामीश शम्भो ॥ ८॥
रुद्राष्टकमिदं प्रोक्तं विप्रेण हरतोषये ।
ये पठन्ति नरा भक्त्या तेषां शम्भुः प्रसीदति ॥
जितने भी मन्त्र है श्रद्धा अनुसार सामने फल
पुष्प तथा मिष्ठान आदि रख कर करें पाठ के उपरान्त यह भोग
परिवार के सभी सदस्यों को वितरण कर देने से
सभी की कामनाये पूर्ण
होगी.......
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