श्री गोस्वामी तुलसीदास
विरचित-
“अत्रिमुनि द्वारा श्रीराम
स्तुति"
का नित्य पाठ करें.
जीवन में
जिनको सर्वोच्च आसन पर जाने
की कामना हो, वे इस स्तोत्र
को भगवान् श्रीराम /
रामायणी हनुमान के चित्र
या मूर्ति के समक्ष बैठकर
नित्य पढ़ें।
।।श्रीअत्रि-मुनिरूवाच।।
नमामि भक्त-वत्सलं, कृपालु-
शील-कोमलम्।
भजामि ते पदाम्बुजं,
अकामिनां स्व-धामदम्।।1ll
निकाम-श्याम-सुन्दरं, भवाम्बु-
नाथ मन्दरम्।
प्रफुल्ल-कंज-लोचनं, मदादि-
दोष-मोचनम्।।2ll
प्रलम्ब-बाहु-विक्रमं,
प्रभो·प्रमेय-वैभवम्।
निषंग-चाप-सायकं, धरं त्रिलोक-
नायकम्।।3ll
दिनेश-वंश-मण्डनम्, महेश-चाप-
खण्डनम्।
मुनीन्द्र-सन्त-रंजनम्,
सुरारि-वृन्द-भंजनम्।।4ll
मनोज-वैरि-वन्दितं, अजादि-देव-
सेवितम्।
विशुद्ध-बोध-विग्रहं, समस्त-
दूषणापहम्।।5ll
नमामि इन्दिरा-पतिं, सुखाकरं
सतां गतिम्।
भजे स-शक्ति सानुजं, शची-पति-
प्रियानुजम्।।6ll
त्वदंघ्रि-मूलं ये नरा:,
भजन्ति हीन-मत्सरा:।
पतन्ति नो भवार्णवे, वितर्क-
वीचि-संकुले।।7ll
विविक्त-वासिन: सदा,
भजन्ति मुक्तये मुदा।
निरस्य इन्द्रियादिकं,
प्रयान्ति ते गतिं स्वकम्।।8ll
तमेकमद्भुतं प्रभुं,
निरीहमीश्वरं विभुम्।
जगद्-गुरूं च शाश्वतं,
तुरीयमेव केवलम्।।9ll
भजामि भाव-वल्लभं, कु-
योगिनां सु-दुलर्भम्।
स्वभक्त-कल्प-पादपं, समं सु-
सेव्यमन्हवम्।।10ll
अनूप-रूप-भूपतिं,
नतोऽहमुर्विजा-पतिम्।
प्रसीद मे नमामि ते, पदाब्ज-
भक्तिं देहि मे।।11ll
पठन्ति से स्तवं इदं,
नराऽऽदरेण ते पदम्।
व्रजन्ति नात्र संशयं, त्वदीय-
भक्ति-संयुता:।।12 ll
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