क्या स्त्रियों की दयनीय दशा के लिए पुरुष जिम्मेदार है?
समाज "पुरुष प्रधान" बना इसके लिये कौन जिम्मेदार है?
उत्तर: आदि काल से स्त्रियों ने उन्ही पुरुषों को चुना है, जिन्हे वो खुद से विशेष समझती हैं। जैसे सतयुग ज्ञान प्रधान था, उस समय की स्त्रियाँ भी ज्ञान के पींछे भागती थी। इस वजह से उस समय के चक्रवर्ती राजाओं की क्षत्राणी पुत्रियाँ भी ब्राह्मण और ऋषियों के सामने समर्पण करके उनसे विवाह करके उन्ही के आश्रमो मे रहने लगती।
जैसे अनुुसुइया, अहिल्या आदि सभी राजकन्याओं ने ऋषियों से विवाह किया। इन सबकी देवियों के रूप मे पूजी जाती हैं। इसके बाद उनकी धारणायें बदलती गयी। लेकिन महत्वपूर्ण ये है कि उन्होने अपने अनुरूप उन्ही पुरुषों के सामने समर्पण किया जो उन्हे खुद से विशेष लगता और जिसे वो अपनी इच्छाओं के पूरा करने मे सहाँयक समझती। सृष्टि के आदि मे भी जब देवी दुर्गा ने तीन देवियों को प्रकट किया और कहा तुम अपनी इच्छा से तीनो देवों मे किसी एक से विवाह कर लो। ब्रह्मज्ञानी ब्रह्मा को ज्ञान की आवश्यकता नही है फिर भी देवी सरस्वती ने उनसे विवाह किया। शंकर जी सर्वशक्तिमान विनाशक हैं तो देवी पार्वती ने उनके समर्पण कर दिया। समुद्र मंथन के समय देवी लक्ष्मी के सामने अनेकों देवताओं ने विवाह की इच्छा की परंतु लक्ष्मी ने भगवान विष्णु के सामने समर्पण किया। यहाँ पर भगवान विष्णु बिल्कुल उदासीन थे। उन्हे नाम मात्र को भी ऐसा कुछ नही लगा कि लक्ष्मी मे कोई विशेषता है। सभी युगों में यही हुआ।
जब उन्हें विवाह के लिए पुरुष चुनने को अधिकार मिला उन्होंने उसी को चुना जो उनसे विशेष था और जो उन्हें पसंद था। आज भी पढ़ा लिखा अच्छे पद प्रतिष्ठा वाला पुरुष किसी साधारण घर की अनपढ लड़की से विवाह कर लेते हैं। परंतु लड़कियों को उनसे ज्यादा पढ़ा- लिखा, उनसे बड़े पद वाला लड़का चाहिए। ऐसे ही सभी स्त्रियाँ अपनी नजर मे विशेष पुरुष के सामने समर्पण करके उनसे विवाह किया। इस प्रकार आदिकाल से स्त्रियों ने उन पुरुषों से विवाह किया जिनसे वो पराजित हो गयी। स्त्रियों ने उन पुरुषों से विवाह नही किया जो उनसे पराजित थे। अर्थात् जो पुरुष उन्हे विशेष समझते थे और उनके सौन्दर्य, प्रेम, ज्ञान आदि से आकर्षित होकर उनके सामने समर्पण कर देते थे। उन पुरुषों को वो महत्व नही देती और उनकी भावनाओं का स्त्रियों के सामने कोई महत्व नही रहा।
इस प्रकार समाज 'पुरुष प्रधान' होता गया क्यूँकि विशेष स्त्रियाँ अपने से विशेष पुरुषों के सामने पराजित होकर उनसे विवाह करती गयी। अगर स्त्रियाँ अपने से पराजित पुरुषों को महत्व देकर उनसे विवाह करती तो समाज "स्त्री प्रधान" हो जाता है। आज अगर समाज मे स्त्रियों की दशा ऊपर उठी है तो उसकी वजह यही है कि 2 से 4 प्रतिशत स्त्रियाँ उनसे विवाह कर रही हैं जो उनसे पराजित हो गये हैं और वो उनसे पराजित नही है। सूरज के सामने चाँद का अस्तित्व क्षीण हो जाता है। अगर स्त्रियाँ खुद को चाँद समझकर अधिक प्रकाश वाले सूरज को चुनेंगी तो समाज "पुरुष प्रधान" ही रहेगा। इंदिरा गाँधीजी ने फ़िरोज़ खान से विवाह किया तो क्या इंदिरा के पद प्रतिष्ठा मे फर्क पड़ा? क्या फ़िरोज़ खान पुरुष प्रधान बना पाए? अगर पुरुष प्रधान समाज़ न बने और स्त्री प्रधान समाज बन जाए तो स्त्रियाँ अपने से कम पढ़े लिखे, अपने से कम पद प्रतिष्ठा वाले, अपने उपर मर मिटने वाले लड़कों से विवाह करें।
इस आर्टिकल का उद्देश्य किसी की भावना को आहत करना नहीं है। परंतु अगर आप पढ़कर इस पर ध्यान देंगे तो इसक सत्यता को पूर्णतः नकारा नहीं जा सकता।
द्वारा
लवलेश गौतम
समाज "पुरुष प्रधान" बना इसके लिये कौन जिम्मेदार है?
उत्तर: आदि काल से स्त्रियों ने उन्ही पुरुषों को चुना है, जिन्हे वो खुद से विशेष समझती हैं। जैसे सतयुग ज्ञान प्रधान था, उस समय की स्त्रियाँ भी ज्ञान के पींछे भागती थी। इस वजह से उस समय के चक्रवर्ती राजाओं की क्षत्राणी पुत्रियाँ भी ब्राह्मण और ऋषियों के सामने समर्पण करके उनसे विवाह करके उन्ही के आश्रमो मे रहने लगती।
जैसे अनुुसुइया, अहिल्या आदि सभी राजकन्याओं ने ऋषियों से विवाह किया। इन सबकी देवियों के रूप मे पूजी जाती हैं। इसके बाद उनकी धारणायें बदलती गयी। लेकिन महत्वपूर्ण ये है कि उन्होने अपने अनुरूप उन्ही पुरुषों के सामने समर्पण किया जो उन्हे खुद से विशेष लगता और जिसे वो अपनी इच्छाओं के पूरा करने मे सहाँयक समझती। सृष्टि के आदि मे भी जब देवी दुर्गा ने तीन देवियों को प्रकट किया और कहा तुम अपनी इच्छा से तीनो देवों मे किसी एक से विवाह कर लो। ब्रह्मज्ञानी ब्रह्मा को ज्ञान की आवश्यकता नही है फिर भी देवी सरस्वती ने उनसे विवाह किया। शंकर जी सर्वशक्तिमान विनाशक हैं तो देवी पार्वती ने उनके समर्पण कर दिया। समुद्र मंथन के समय देवी लक्ष्मी के सामने अनेकों देवताओं ने विवाह की इच्छा की परंतु लक्ष्मी ने भगवान विष्णु के सामने समर्पण किया। यहाँ पर भगवान विष्णु बिल्कुल उदासीन थे। उन्हे नाम मात्र को भी ऐसा कुछ नही लगा कि लक्ष्मी मे कोई विशेषता है। सभी युगों में यही हुआ।
जब उन्हें विवाह के लिए पुरुष चुनने को अधिकार मिला उन्होंने उसी को चुना जो उनसे विशेष था और जो उन्हें पसंद था। आज भी पढ़ा लिखा अच्छे पद प्रतिष्ठा वाला पुरुष किसी साधारण घर की अनपढ लड़की से विवाह कर लेते हैं। परंतु लड़कियों को उनसे ज्यादा पढ़ा- लिखा, उनसे बड़े पद वाला लड़का चाहिए। ऐसे ही सभी स्त्रियाँ अपनी नजर मे विशेष पुरुष के सामने समर्पण करके उनसे विवाह किया। इस प्रकार आदिकाल से स्त्रियों ने उन पुरुषों से विवाह किया जिनसे वो पराजित हो गयी। स्त्रियों ने उन पुरुषों से विवाह नही किया जो उनसे पराजित थे। अर्थात् जो पुरुष उन्हे विशेष समझते थे और उनके सौन्दर्य, प्रेम, ज्ञान आदि से आकर्षित होकर उनके सामने समर्पण कर देते थे। उन पुरुषों को वो महत्व नही देती और उनकी भावनाओं का स्त्रियों के सामने कोई महत्व नही रहा।
इस प्रकार समाज 'पुरुष प्रधान' होता गया क्यूँकि विशेष स्त्रियाँ अपने से विशेष पुरुषों के सामने पराजित होकर उनसे विवाह करती गयी। अगर स्त्रियाँ अपने से पराजित पुरुषों को महत्व देकर उनसे विवाह करती तो समाज "स्त्री प्रधान" हो जाता है। आज अगर समाज मे स्त्रियों की दशा ऊपर उठी है तो उसकी वजह यही है कि 2 से 4 प्रतिशत स्त्रियाँ उनसे विवाह कर रही हैं जो उनसे पराजित हो गये हैं और वो उनसे पराजित नही है। सूरज के सामने चाँद का अस्तित्व क्षीण हो जाता है। अगर स्त्रियाँ खुद को चाँद समझकर अधिक प्रकाश वाले सूरज को चुनेंगी तो समाज "पुरुष प्रधान" ही रहेगा। इंदिरा गाँधीजी ने फ़िरोज़ खान से विवाह किया तो क्या इंदिरा के पद प्रतिष्ठा मे फर्क पड़ा? क्या फ़िरोज़ खान पुरुष प्रधान बना पाए? अगर पुरुष प्रधान समाज़ न बने और स्त्री प्रधान समाज बन जाए तो स्त्रियाँ अपने से कम पढ़े लिखे, अपने से कम पद प्रतिष्ठा वाले, अपने उपर मर मिटने वाले लड़कों से विवाह करें।
इस आर्टिकल का उद्देश्य किसी की भावना को आहत करना नहीं है। परंतु अगर आप पढ़कर इस पर ध्यान देंगे तो इसक सत्यता को पूर्णतः नकारा नहीं जा सकता।
द्वारा
लवलेश गौतम
No comments:
Post a Comment