स्वभाव किसी भी जीव को ईश्वर प्रदत्त है। जैसे बिच्छू का स्वभाव है डंक मारना, सर्प का स्वभाव है डसना, शेर का स्वभाव है हिंसा, संतों का स्वभाव है दया। किसी जीव में जन्म के साथ ही ये गुण आता है और धीरे धीरे परिपक्व होता जाता है।
जैसे कालिया मर्दन लीला में कालिया नाग भगवान कृष्ण से क्षमा मांगते हुए कहता भी है कि मुझे आपने ही ऐसा बनाया है और आपने ही ऐसा स्वभाव दिया है, जिसके चलते मैं विष उगलता हूँ और हिंसा भी करता हूँ। आपके दिए इस स्वभाव के कारण ही मैं क्रोधी हूँ और बदला लेने में विश्वास करता हूँ। अपने इसी स्वभाव के चलते ही मैंने आप पर हमला किया।
इसलिए इसको बदलना एक तरह से नामुमकिन ही माना जाता है। इसीलिए मनुष्य को छोंडकर दूसरे जीवों को उनके कर्मों का पाप नहीं लगता है। जैसे एक सर्प आपको डस ले और आपकी मृत्यु हो जाए तो सर्प को पाप नहीं लगेगा। परंतु यदि आप उस सर्प को मार दें तो पाप लगता है। ऐसा इस्लिए होता है कि मनुष्य को भगवान ने दूसरे जीवों से श्रेष्ठ बनाया है। मनुष्य अपने विवेक के द्वारा ' क्या उचित है और क्या अनुचित है’ का निर्णय ले सकता है।
राजा राष्ट्रकृतं पापं राज्ञ: पापं पुरोहित:।
भर्ता च स्त्रीकृतं पापं पुत्रम् पापं पिता तथा॥
स्वभावो न उपदेशेन शक्यते कर्तुमन्यथा।
कर्मायत्तं फलं पुंसां बुद्धिः कर्मानुसारिणी॥
अन्यक्षेत्रे कृतं पापं पुण्य क्षेत्रे विनश्यति।
शस्त्र क्षेत्रे कृतं पापं वज्रलेपो भविष्यति॥
वास्तव में मनुष्य भी अपने जन्म के साथ ही अपना स्वभाव लाता है। ये स्वभाव प्रकृति के तीन गुणों से उत्पन्न होता है, सत, रज्, तम। जिस व्यक्ति मे तम गुण अधिक होता है, वो इर्ष्यालु, गुस्सैल और अपराधी प्रवृत्ति का होता जाता है। रज गुण वाला सुख की ही इच्छा करता है और कामी होता है। सत गुण उत्तम गुण है, ऐसा व्यक्ति प्रत्येक स्थिति में धैर्यवान बना रहता है। सतगुणी व्यक्ति किसी भी निर्णय में अपने विवेक को बेहतर इस्तेमाल करता है। जैसे सुरों मे रजोगुण होता है और असुरों में तमोगुण होता है। भगवान राम का अवतार सतगुण का उदाहरण हैं। किसी भी व्यक्ति का स्वभाव बदलना कितना मुश्किल है, ये आप इन उदाहरणों से देख सकते हैं:
१. रावण को हनुमान, विभीषण, मंदोदरी, अंगद और अनेक ऋषियों ने समझाने की कोशिश की, कोई परिणाम नहीं निकला।
२. दुर्योधन को भीष्म, विदुर, कृपाचार्य सहित भगवान कृष्ण ने कितना कोशिश की, उसका स्वभाव नहीं बदला।
लेकिन ऐसा भी नहीं है कि स्वभाव बदलना बिल्कुल असंभव है। लुटेरा अंगुलीमाल कितना बड़ा हत्यारा था, लेकिन भगवान बुद्ध के शरण में जाकर बिल्कुल ही बदल गया।
द्वारा
लवलेश गौतम
जैसे कालिया मर्दन लीला में कालिया नाग भगवान कृष्ण से क्षमा मांगते हुए कहता भी है कि मुझे आपने ही ऐसा बनाया है और आपने ही ऐसा स्वभाव दिया है, जिसके चलते मैं विष उगलता हूँ और हिंसा भी करता हूँ। आपके दिए इस स्वभाव के कारण ही मैं क्रोधी हूँ और बदला लेने में विश्वास करता हूँ। अपने इसी स्वभाव के चलते ही मैंने आप पर हमला किया।
इसलिए इसको बदलना एक तरह से नामुमकिन ही माना जाता है। इसीलिए मनुष्य को छोंडकर दूसरे जीवों को उनके कर्मों का पाप नहीं लगता है। जैसे एक सर्प आपको डस ले और आपकी मृत्यु हो जाए तो सर्प को पाप नहीं लगेगा। परंतु यदि आप उस सर्प को मार दें तो पाप लगता है। ऐसा इस्लिए होता है कि मनुष्य को भगवान ने दूसरे जीवों से श्रेष्ठ बनाया है। मनुष्य अपने विवेक के द्वारा ' क्या उचित है और क्या अनुचित है’ का निर्णय ले सकता है।
राजा राष्ट्रकृतं पापं राज्ञ: पापं पुरोहित:।
भर्ता च स्त्रीकृतं पापं पुत्रम् पापं पिता तथा॥
स्वभावो न उपदेशेन शक्यते कर्तुमन्यथा।
कर्मायत्तं फलं पुंसां बुद्धिः कर्मानुसारिणी॥
अन्यक्षेत्रे कृतं पापं पुण्य क्षेत्रे विनश्यति।
शस्त्र क्षेत्रे कृतं पापं वज्रलेपो भविष्यति॥
वास्तव में मनुष्य भी अपने जन्म के साथ ही अपना स्वभाव लाता है। ये स्वभाव प्रकृति के तीन गुणों से उत्पन्न होता है, सत, रज्, तम। जिस व्यक्ति मे तम गुण अधिक होता है, वो इर्ष्यालु, गुस्सैल और अपराधी प्रवृत्ति का होता जाता है। रज गुण वाला सुख की ही इच्छा करता है और कामी होता है। सत गुण उत्तम गुण है, ऐसा व्यक्ति प्रत्येक स्थिति में धैर्यवान बना रहता है। सतगुणी व्यक्ति किसी भी निर्णय में अपने विवेक को बेहतर इस्तेमाल करता है। जैसे सुरों मे रजोगुण होता है और असुरों में तमोगुण होता है। भगवान राम का अवतार सतगुण का उदाहरण हैं। किसी भी व्यक्ति का स्वभाव बदलना कितना मुश्किल है, ये आप इन उदाहरणों से देख सकते हैं:
१. रावण को हनुमान, विभीषण, मंदोदरी, अंगद और अनेक ऋषियों ने समझाने की कोशिश की, कोई परिणाम नहीं निकला।
२. दुर्योधन को भीष्म, विदुर, कृपाचार्य सहित भगवान कृष्ण ने कितना कोशिश की, उसका स्वभाव नहीं बदला।
लेकिन ऐसा भी नहीं है कि स्वभाव बदलना बिल्कुल असंभव है। लुटेरा अंगुलीमाल कितना बड़ा हत्यारा था, लेकिन भगवान बुद्ध के शरण में जाकर बिल्कुल ही बदल गया।
द्वारा
लवलेश गौतम
No comments:
Post a Comment