अष्टांग योग - षड़चक्र - कुंडलिनी जागरण
मनुष्य देह - भोग और मोक्ष का उत्तम साधन.... निराकार ब्रह्म शिव ने पाच तत्व -भूमि,जल,अग्नि,
वायु और आकाश से १४ ब्रह्माण्ड बनाए.उनमे देव,दानव,यक्ष,किन्नर,चारण,गान्धर्व और मानव सृष्टि बनायी.बाकी सभी कोई एक या दो तत्व से बने हे.एक मनुष्य देह पाच तत्व से बनाया हे.इसलिए ही पाचो तत्व देवता को पाके ही ब्रह्म प्राप्ति हो सकती हे.इसलिए ही कहेते की मनुष्य देह देवताओ को भी दुर्लभ हे.पाचो तत्व से मानव देह बना हे
मतलब उन पाचो तत्व के देवता - गणेश,शक्ति,सूर्
य,नारायण और रूद्र हमारे शरिर में मोजूद हे.शरिर में पाच चक्र हे वो तत्व देवता की शक्ति वह स्थित हे.हमारे रूशी-मुनियों ने हमें उनका जागरण कर भोग और मोक्ष का मार्ग दिखाया हे,उनको ही कहेते हे कुण्डलिनी शक्ति का जागरण और उपासना.कुण्डलिनी शक्ति जो मूलाधार चक्र में स्थित हे वह से ही जीवन शक्ति का प्रवाह पाचो चक्रों में बहेता रहेता हे.इस पाचो चक्र के तत्व से शरीर की दश इन्द्रिया का सञ्चालन होता हे.जेसे मूलाधार चक्र = भूमि तत्व-देवता गणेश - इष्ट ब्रह्मा-से नाक याने धार्नेंद्रिय और कामेन्द्रिय इस दोनों का संचालन होता हे.भूमिगत हर प्रकार का सुख उनसे प्राप्त किया जा सकता हे. स्वाधिष्ठान चक्र = जल तत्व -देवता ब्रह्मा-इष्ट नारायण-से जीभ [जिह्वा]और क्रोध इस दोनों का संचालन होता हे.हर प्रवाहि रस-रूप की सारी सिध्धिया उसके उपासन से पाई जाती हे.मणिपुर चक्र = अग्नि तत्व -देवता विष्णु-इष्ट रूद्र-से आँख और लोभ का संचालन होता हे.उपासना से दिव्य द्रष्टि याने लाभप्रद मार्ग अपने आप मिलता हे.अनाहत चक्र =वायु तत्व -देवता शिव-इष्ट इश्वर से स्पर्श और मोह का संचालन होता हे.उपासना से निर्मोही बनके विश्व की हर सम्पदा पायी जाती हे.विशुद्ध चक्र =आकाश तत्व -देवता जीव-इष्ट अर्धनारीश्वर सदाशिव से कान [कर्ण]और अहंकार का संचालन होता हे.उपासना से लय योग ब्रह्मत्व की प्राप्ति होती हे.इस पाच चक्रों की जाग्रति होते ही आज्ञा चक्र में गुरु और परम शिव की शक्ति जागृत होती हे और नाद का प्रगति होता हे.और कुण्डलिनी शक्ति इन सारे चक्रों को भेद के सहस्त्रार चक्र में पहोचाते ही जीव शिव बनता हे.परः ब्रह्म और महादेवी में विलीन होता हे.इस पाचो चक्रों की उपासना के विषय में चक्र के यंत्र दिए है
क्रिया, यम,नियम,आसन,प्राणायाम,प्रत्याहार, ध्यान,धारणा,और समाधि का विषय समजाया हे.......
[१] यम:- सत्य,अहिंसा,दया,क्षमा,मिताह
ार,ब्रह्मचर्य का पालन....
[२] नियम:- जप,तप,व्रत,पूजा,दान,श्रद्धा ,संतोष,सिद्धांत,श्रवण....
[३] आसन:- स्वस्तिकासन,गोमुखासन,वीरासन,पद
मासन,सिंहासन,भद्रासन,मुक्तासन,मयूरासन,ये सब आसान करने से शरीर में जीवन पर्यत कभी भी रोग नहीं होते.
[४] प्राणायाम:- एक आसन में शरीर सीधा रखके बेठे.दाई और की नाक की नस्कोरी से १२३४५६७ गिनते स्वास भरे,स्वास खिचते समय लगे समय से चारगुना समय तक स्वास रोके और दुगने समय बायीं और के नस्कोरी से स्वास छोड़े.अब बायीं और से इसी क्रम से स्वास भरे और दाई और से चोदे.ये एक प्राणायाम हवा.ऐसे चार प्राणायाम करे.धीरे धीरे समय bahda सकते हे....
[५] प्रत्याहार:- स्वस्तिकासन में बैठके लंबा स्वास भरके प्राण को पैर के के अंगुलियों से लेके सर की शिखा तक प्राण रोकना उसे प्रत्याहार कहेते हे...
[६]धारणा:- देह के अंदर पाचो तत्व के देवता की अलग अलग अन्गोमे बिराजे हे एसी धारना करना.
[७] ध्यान:- हमारे रुदय में बेठे शिव में मन लगाना ,वहां चीत को एकाग्र करना .
[८]समाधि:- ध्यान करते करते सारी क्रिया भूल हम शिवमय बन जाते हे वो हे समाधि....
थोड़े दिनोंकी प्रयत्नों से ये सब आसानीसे हो सकता हे.अष्टांग योग अनुसरण के बाद कोई भी उपासना सरलता से की जा सकती हे.आप आपके गुरदेव या कोई भी मार्गदर्शक से विशेष जानकारी पा के उपासना कर सकते हे.
( 1 ) मूलाधार चक्र: -
लं ..बीज का ध्यान कर महागणपति की करो उपासना - पंचतत्व में भुमितत्व के अधिष्ठाता हे महागणपति.शारीर में स्थित मूलाधार चक्र में उनका ध्यान किया जाता हे.मूलाधार चक्र रक्तवर्ण और चतुष्कोण हे.लं बीज हे.महागणपति के गं गणपतये नमः इस मन्त्र से उपासना करके मूलाधार चक्र की महागणपति की पृथ्वीतत्व की शक्ति का जागरण किया जाता हे.भूमि तत्व से सारी भौतिक सुख-समृद्धि मिलती हे.योग्य मार्गदर्शक से निति-नियम जानके ये उपासना कर सकते हे.इस उपासना से जीवन में हर प्रकार की सुख समृद्धि प्राप्त कर सकते हे....
( 2 ) स्वाधिष्ठान चक्र: -
स्वाधिष्ठान चक्र में वं बीज की उपासना - कुण्डलिनी महाशक्ति जागरण के प्रकरण में शरीरस्थ चक्रों के विषय में बताया हे.स्वाधिष्ठान चक्र में जल तत्व हे.वं बीज हे.तत्व देवता ब्रह्मशक्ति हे.इश्वर नारायण हे.जिहव[जीभ]और क्रोध इन्द्रिय हे.आगे के प्रकरण में बताए अनुसार अष्टांग योग का अनुसरण करते हुवे स्वस्तिकासन में टटार बेठे और स्वाधिष्ठान चक्र में जल तत्व में वं बीज का ध्यान करते हुवे उसी स्थान पे वं बीज का जाप करो.इस ध्वनी से धीरे धीरे चक्र की शक्ति का जागरण होगा.जीभ,स्वाद,वाणी,क्रोध पर संयम आएगा.शक्ति जागरण के साथ ही रीढ़ही-सिद्धि सह सुख समृद्धि प्राप्त होगी.सद्गुरु के मार्गदर्शन में सफलता प्राप्त होती हे...
( 3 ) मणिपुर चक्र: -
मणिपुर चक्र में रं बीज की उपासना और हर प्रकार के असाध्य रोगों से भी मुक्ति.निरोगी और तन्दुरस्त और दीर्घायु जीवन का रूशी-मुनियों का यही रहस्य हे.नाभि में स्थित सुवर्ण रंगी चक्र में रं बीज हे.तेज[अग्नि]तत्व हे.तत्व देवता विशु हे.इश्वर रूद्र हे.अष्टांग योग के अनुसरण के साथ ही नाभि में सूर्य और चंद्र नाडी के संयोजन से प्रचुर जीवन शक्ति का पादुर्भाव होता हे.जो किसीभी प्रकार के रोग का नाश करके दीर्घायु प्रदान करती हे.इन्द्रिय आँख और लोभ हे.दिव्य द्रष्टि और दीर्घ दष्टि प्राप्त होने के कारण आगे भविष्य को उज्वल बनाया जा सकता हे.मणिपुर चक्र में रं के नाद से सुर्य जेसी तेजस्वीता प्राप्त होती हे.रं बीज से शरीर में अग्नि तत्व की जागृति से जठराग्नि सतेज होने से पाचन क्रिया श्रेष्ठ बनके शरीर के हर अंश को तेजस्वी बनाती हे.शरीर के रोगों में ९० प्रतिशत रोग पेट से ही होते हे उनका शमन होता हे.मणिपुर चक्र की जागृति के साथ अणिमाँदि सिद्धिया प्राप्त होती हे.मणिपुर चक्र की जागृति के साथ ही साधक के चित-वृति दिव्यता से भरपूर हो जाती हे और आगे की सारी उपासना अपने आप ही सम्पन होती हे.....
( 4 ) अनाहत चक्र: -
अनाहत चक्र में यं बीज की उपासना.=मनुष्य के शरीर में अनाहत चक्र रदय में हे.हरकोई मनुष्य अपने इष्ट का ध्यान हमेशा रदय में करता हे.रक्त रंगी अनाहत चक्र में वायु तत्व में यं बीज स्थित हे.तत्व के देवता महारुद्र और इष्ट इश्वर हे.आदित्य-सूर्य कारक हे.चमड़ी,स्पर्श और मोह इन्द्रिय हे.यं बीज का ध्यान करने से और यं ध्वनी नाद से इस चक्र की जागृति होते ही सर्वलोक आकर्षित होता हे.आत्म-शक्ति प्रबल होती हे.सिद्धिया स्वयं आती हे.हर प्रकार के भोग भुगतते हुवे भी मनुष्य विरक्त रहेता हे.मानुष लोक के अलावा अन्यलोक की दिव्य सृष्टि से संपर्क होता हे.सत्य,अहिंसा,
दया और प्रेम इन चारों सद्गुणों के के साथ मनुष्य धेर्य्वान बनता हे.इस चक्र की जागृति के साथ ही ब्रह्म प्राप्ति का मार्ग सरल बन जाता हे....
( 5 ) विशुद्ध चक्र: -
विशुद्ध चक्र हं बीज की उपासना = मानव शरीर में कंठ के पास विशुद्ध चक्र हे.धूम्र वर्ण हे.आकाश तत्व में हं बीज स्तित हे.तत्व देवता जीव हे और इष्ट सदाशिव हे.कर्ण[कान]और अहंकार इन्द्रिय हे.इस चक्र की उपासना से हमारे शरीर के शिव और शिवा का तत्व समजा जाता हे.लय योग साध्य हो जाता हे.ब्रह्माण्ड के हर लोक से संपर्क बनता हे.पश्यन्ति वाणी साध्य हो जाती हे.मिथ्याभिमान का नाश होता हे और अहं ब्रह्मासमी तत्व का ज्ञान होता हे.इस तत्व की जागृति के साथ ही अग्या चक्र के तत्व देवता गुरु की कृपा होती हे और सहस्त्रार चक्र में परःब्रह्म की अनुभूति सहज हो जाती हे.परमहंस कक्षा की स्थिति में स्वयं ही ब्रह्म अंश बना देती हे.शरीर की उपासना की इस यौगिक प्रक्रिया को विस्तृत नहीं लिखा जाता.क्युकी हर मनुष्य केलिए प्रक्रिया भिन्न हो जाती हे
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