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Thursday, November 30, 2017

Madhya Pradesh "Basawan Mama Award" for forest conservation:

मध्य प्रदेश शासन ने वर्ष 2009 से वन एवम् वन्य प्राणी संरक्षण के क्षेत्र में उत्कृष्ट कार्य करने वाले व्यक्तियों और संस्थाओं के लिये बसावन मामा स्मृति पुरस्कार दिये जाने का निर्णय लिया। मध्य प्रदेश शासन द्वारा चार श्रेणियों में कुल 12 बसावन मामा स्मृति पुरस्कार दिये जा रहे हैं। बसावन मामा विन्ध्य क्षेत्र मे ऐसे देवता के रूप में पूजे जाते हैं जिन्होने वृक्षों की रक्षा के लिये अपने जीवन का बलिदान कर दिया। बसावन मामा विन्ध्य क्षेत्र के अत्यन्त सम्मानित देवता हैं। इन्हे मनोरथों को पूर्ण करने के लिये जाना जाता है।

1. विन्ध्य क्षेत्र स्तरीय पुरस्कार (वन एवम वन्य प्राणी संरक्षण हेतु):

1(क). वन एवम् वन्य प्राणी के संरक्षण के क्षेत्र में प्रदर्शित की गयी शूरवीरता के लिये शासकीय अधिकारियों/ कर्मचारियों को प्रथम पुरुस्कार हेतु रु. 2 लाख, द्वितीय पुरस्कार हेतु रु. 1 लाख तथा तृतीय पुरस्कार हेतु रु. 50 हजार का नगद पुरस्कार तथा प्रशस्ति पत्र।

1(ख). वन एवम वन्य प्रणी संरक्षण के क्षेत्र मे प्रदर्शित की गयी शूरवीरता के लिये अशासकीय व्यक्तियों को प्रथम पुरस्कार हेतु रु. 2 लाख, द्वितीय पुरस्कार हेतु रु. 1 लाख तथा तृतीय पुरस्कार हेतु रु. 50 हजार तथा प्रशस्ति पत्र।

2. राज्य स्तरीय वन संवर्धन पुरस्कार(निजी भूमि मे वृक्षारोपण हेतु):

2(क). वन संवर्धन के अंतर्गत 5 हेक्टेयर से अधिक निजी भूमि मे वृक्षारोपण को प्रोत्साहित करने वाले व्यक्ति/संस्था को प्रथम पुरस्कार हेतु रु. 2 लाख, द्वितीय पुरस्कार हेतु रु. 1 लाख तथा तृतीय पुरस्कार हेतु रु 50 हजार का नगद पुरस्कार तथा प्रशस्ति पत्र।

2(ख). वन संवर्धन के अंतर्गत 5 हेक्टेयर से कम निजी भूमि मे वृक्षारोपण को प्रोत्साहित करने वाले व्यक्ति/संस्था को प्रथम पुरस्कार हेतु रु. 2 लाख, द्वितीय पुरस्कार हेतु रु. 1 लाख तथा तृतीय पुरस्कार हेतु रु 50 हजार का नगद पुरस्कार तथा प्रशस्ति पत्र।

"बसावन मामा के बारे में जानें"

यह घटना बहुत पुरानी है अर्थात् रीवा क्षेत्र में बघेलों के आगमन के पूर्व की है। बघेल वंश इस क्षेत्र मे रीवा राजधानी होने के पश्चात स्थापित हुये हैं, जिसमें लोधियों का राज्य था। पुरवागढ का मालिक राजा दुर्जन सिंह बहुत ही क्रूर शासक था। स्थानीय लोगों के बताये अनुसार बसावन मामा का जन्म पुरवागढ के पास ही स्थित कुम्हरा गाँव(रीवा) में एक गरीब ब्राह्मण शुक्ल वंश मे हुआ। पिता की मृत्यु बचपन में हो गयी, उनके परिवार में मात्र एक बहन और माँ थी। परिवार की धार्मिक पृष्ठभूमि के कारण वह बचपन से ही भगवान के भक्त बन गये। एक पीपल का वृक्ष जो उनके घर के ठींक सामने था, उसकी पूजा किये बिना वह अन्न-जल ग्रहण नही करते थे।

पुरवागढ का शासक दुर्जन सिंह वृक्षों का दुश्मन था
 वह अपने निजी स्वार्थ के लिये वृक्षों का उजाड रहा था। उस पीपल के वृक्ष को जबरिया दुर्जन सिंह के द्वारा कटवाये जाने पडे पर बसावन शुक्ल ने खुलकर विरोध किया। परंतु जब विरोधी वृक्ष काटने से नही रुके तो बसावन शुक्ल ने अपने हाँथ मे कटार लिया और घोंषणा की, "दुर्जन सिंह मै तुम्हारे पूरे वंश का नाश कर दूँगा"। इसके बाद उन्होने उस कटार से वृक्षों की रक्षा न कर पाने के दुख मे अपने पेट मे मारकर तथा अपने हाँथ भी काट दिये और मृत्यु को प्राप्त हो गये। उनके साथ ही उनके  एक मित्र 'भाँट' ने अपने शरीर मे खुरपा भोंककर अपना जीवन त्याग दिया।

 पुण्यात्मा बसावन शुक्ल अपने उत्तम कर्मों की वजह से देव योनि को प्राप्त हो गये और वृक्षों के स्वामी यक्ष देवता के दिव्य शरीर के साथ प्रकट हुये और तत्काल ही पापी दुर्जन सिंह का विनाश कर दिया। उनकी क्रोधाग्नि किसी भी प्रकार से शांत न हुई और उन्होने दुर्जन सिंह के परिवार के भी विनाश करना चालू कर दिया। दुर्जन सिंह के एक नाती ने यक्ष देवता बसावन के शरण में जाकर उन्हे 'मामा' कहकर उनसे अभयदान माँगा। इसके बाद उनकी क्रोधाग्नि शांत हो गयी और बो बसावन मामा बनकर अपनी प्रतिज्ञा छोंडकर उसे अभयदान दे दिया। तभी से वह यक्ष देवता बसावन मामा के रूप मे विख्यात हो गये। भक्त अपनी मनोकामना पूरी करने के लिये वहाँ कतार मे लगे रहते हैं। जिन्होने अपने जीवन को वृक्षों की रक्षा के लिये कुर्बान कर दिया ऐसे बसावन मामा की पर्यावरण की रक्षा करने वालों पर विशेष कृपा रहती है।

 हमेशा याद रखो कि रावण, बाणासुर जैसे असुर भी भगवान शिव के भक्त थे परंतु भगवान शिव ने उसके अधर्म कर्म मे न तो सहयोग दिया और न ही उसकी रक्षा की। भीम का पौत्र घटोत्कक्ष पुत्र बारबारिक भगवान कृष्ण क भक्त था परंतु उसने प्रतिज्ञा की कि महाभारत युद्ध मे जो सेना हारेगी उसकी तरफ से युद्ध लडूँगा। भगवान कृष्ण भविष्य जानते थे अतः वो जान गये कि यह भविष्य में कौरव की तरफ से ही युद्ध लडेगा। भगवान कृष्ण ने धर्म की रक्षा के लिये उसका वध महाभारत युद्ध के पहले ही कर दिया। भगवान के भक्त बनने का मतलब है "धर्म और परोपकार के रास्ते मे बिना किसी स्वार्थ के चलना"। यदि तुम गलत रास्ते मे हो और भगवान की घंटो पूजा अपने स्वार्थ के लिये करते हो तो भगवान तुम पर कृपा नही करने वाले। भगवान का कथन है अन्यायियों और अधर्मियों को दंड देकर मै उन पर कृपा करता हूँ क्योंकि उनके लिये दंड ही दया है।
द्वारा
लवलेश गौतम
(Lawlesh Gautam)

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