सृष्टि रचयिता ब्रह्माजी ने नौ प्रकार की निधि का वर्णन किया है। जिनमें से आठ प्रमुख निधि हैं और एक गौंण अर्थात् मिश्र निधि है। नौ प्रमुख निधि इस प्रकार हैं:
1. महापद्म:Mahapadma "great lotus flower"
2. पद्म: Padma "lotus flower"
3. शंख: Shankha "conch"
4. मकरः Makara "crocodile"
5. कच्छप: Kachchhapa "tortoise"
6. कुमुदः Kumud "a particular precious stone"
7. कुंद: Kunda "jasmine"
8. नीलः Nila "sapphire"
9. मिश्र या खर्व: Kharva "dwarf"
नौ निधि का संक्षिप्त वर्णन है:
1. पद्म निधि : पद्मनिधि लक्षणो से संपन्न मनुष्य सात्विक होता है तथा स्वर्ण चांदी आदि का संग्रह करके दान करता है।
2. महापद्म निधि : महाप निधि से लक्षित व्यक्ति अपने संग्रहित धन आदि का दान धार्मिक जनों में करता है।
3. नील निधि : निल निधि से सुशोभित मनुष्य सात्विक तेजसे संयुक्त होता है। उसकी संपति तीन पीढीतक रहती है।
4. मुकुंद निधि : मुकुन्द निधि से लक्षित मनुष्य रजोगुण संपन्न होता है वह राज्यसंग्रह में लगा रहता है।
5. नन्द निधि : नन्दनिधि युक्त व्यक्ति राजस और तामस गुणोंवाला होता है वही कुल का आधार होता है।
6. मकर निधि : मकर निधि संपन्न पुरुष अस्त्रों का संग्रह करनेवाला होता है।
7. कच्छप निधि : कच्छप निधि लक्षित व्यक्ति तामस गुणवाला होता है वह अपनी संपत्ति का स्वयं उपभोग करता है।
8. शंख निधि : शंख निधि एक पीढी के लिए होती है।
9. खर्व निधि : खर्व निधिवाले व्यक्ति के स्वभाव में मिश्रित फल दिखाई देते हैं।
पद्म और महापद्म निधि सात्विक हैं।
मकर और कच्छप निधि तामसिक हैं।
मुकुन्द निधि राजसिक है।
कुन्द(नन्द) निधि राजसिक और तामसिक है।
सात्विक अर्थात जो देव स्वभाव के होते हैं, जो निजी स्वार्थ से ऊपर उठकर धर्म के अनुकूल कार्य करते हैं। क्षमा, परोपकार और दान सात्विक व्यक्तियों का आभूषण है। सात्विक लोग स्वर्ण, गौ, धन आदि का संचय धर्म और परोपकार के लिये करते हैं। सात्विक व्यक्ति मरने के बाद स्वर्ग आदि उत्तम लोकों मे जाते हैं।
तामसिक लोग आसुरी स्वभाव के पाखंडी लोग हैं जो अपने स्वार्थ के लिये किसी हद तक जाते हैं। तामसिक लोग ढोंगी, छल-प्रपंच से युक्त होते हैं। तामसिक लोग ईर्ष्यालु होते हैं। तामसिक लोग धन के साथ अस्त्र- शस्त्र का संचय करते हैं। ये लोग अपने स्वार्थ के लिये अधर्म कार्य चोरी, अपहरण, हत्या कोई भी अपराध कर सकते हैं। ये लोग मरने के बाद अधो लोक नरक आदि या निकृष्ट योनि जैसे राक्षस, प्रेत, कुता, सुअर आदि का जन्म पाते हैं।
राजसिक लोग थोडे से दुख से घबरा जाते हैं। राजसिक लोग केवल सुख और भोग के लिये कर्म करते हैं।राजसिक लोग स्वयं के सुख के लिये धन संचय करते हैं। धन संचय के लिये तामसिक या राजसिक गुण अगर अपना लें तो उन्ही के जैसी इनकी गति होती है। राजसिक लोग सुख और वैभव का समान जुटाने मात्र मे पूरा जीवन लगा देते हैं।
द्वारा
लवलेश गौतम
1. महापद्म:Mahapadma "great lotus flower"
2. पद्म: Padma "lotus flower"
3. शंख: Shankha "conch"
4. मकरः Makara "crocodile"
5. कच्छप: Kachchhapa "tortoise"
6. कुमुदः Kumud "a particular precious stone"
7. कुंद: Kunda "jasmine"
8. नीलः Nila "sapphire"
9. मिश्र या खर्व: Kharva "dwarf"
नौ निधि का संक्षिप्त वर्णन है:
1. पद्म निधि : पद्मनिधि लक्षणो से संपन्न मनुष्य सात्विक होता है तथा स्वर्ण चांदी आदि का संग्रह करके दान करता है।
2. महापद्म निधि : महाप निधि से लक्षित व्यक्ति अपने संग्रहित धन आदि का दान धार्मिक जनों में करता है।
3. नील निधि : निल निधि से सुशोभित मनुष्य सात्विक तेजसे संयुक्त होता है। उसकी संपति तीन पीढीतक रहती है।
4. मुकुंद निधि : मुकुन्द निधि से लक्षित मनुष्य रजोगुण संपन्न होता है वह राज्यसंग्रह में लगा रहता है।
5. नन्द निधि : नन्दनिधि युक्त व्यक्ति राजस और तामस गुणोंवाला होता है वही कुल का आधार होता है।
6. मकर निधि : मकर निधि संपन्न पुरुष अस्त्रों का संग्रह करनेवाला होता है।
7. कच्छप निधि : कच्छप निधि लक्षित व्यक्ति तामस गुणवाला होता है वह अपनी संपत्ति का स्वयं उपभोग करता है।
8. शंख निधि : शंख निधि एक पीढी के लिए होती है।
9. खर्व निधि : खर्व निधिवाले व्यक्ति के स्वभाव में मिश्रित फल दिखाई देते हैं।
पद्म और महापद्म निधि सात्विक हैं।
मकर और कच्छप निधि तामसिक हैं।
मुकुन्द निधि राजसिक है।
कुन्द(नन्द) निधि राजसिक और तामसिक है।
सात्विक अर्थात जो देव स्वभाव के होते हैं, जो निजी स्वार्थ से ऊपर उठकर धर्म के अनुकूल कार्य करते हैं। क्षमा, परोपकार और दान सात्विक व्यक्तियों का आभूषण है। सात्विक लोग स्वर्ण, गौ, धन आदि का संचय धर्म और परोपकार के लिये करते हैं। सात्विक व्यक्ति मरने के बाद स्वर्ग आदि उत्तम लोकों मे जाते हैं।
तामसिक लोग आसुरी स्वभाव के पाखंडी लोग हैं जो अपने स्वार्थ के लिये किसी हद तक जाते हैं। तामसिक लोग ढोंगी, छल-प्रपंच से युक्त होते हैं। तामसिक लोग ईर्ष्यालु होते हैं। तामसिक लोग धन के साथ अस्त्र- शस्त्र का संचय करते हैं। ये लोग अपने स्वार्थ के लिये अधर्म कार्य चोरी, अपहरण, हत्या कोई भी अपराध कर सकते हैं। ये लोग मरने के बाद अधो लोक नरक आदि या निकृष्ट योनि जैसे राक्षस, प्रेत, कुता, सुअर आदि का जन्म पाते हैं।
राजसिक लोग थोडे से दुख से घबरा जाते हैं। राजसिक लोग केवल सुख और भोग के लिये कर्म करते हैं।राजसिक लोग स्वयं के सुख के लिये धन संचय करते हैं। धन संचय के लिये तामसिक या राजसिक गुण अगर अपना लें तो उन्ही के जैसी इनकी गति होती है। राजसिक लोग सुख और वैभव का समान जुटाने मात्र मे पूरा जीवन लगा देते हैं।
द्वारा
लवलेश गौतम
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