संसार मे मुख्य रूप से तीन प्रकार के पाप माने गये हैं:
1. बिना दिये हुए किसी की वस्तु ले लेना, हिंसा करना और अपनी धर्म पत्नी के अतिरिक्त किसी दूसरी के साथ संबन्ध बनाना। ये तीन प्रकार के शारीरिक पाप माने गये हैं।
2. कडवे वचन बोलकर धर्म में लगे व्यक्ति, परिवार, दोस्त या धर्म पत्नी के हृदय को कष्ट पहुँचाना, चुगली करना, अनाप- शनाप बातें करना ये चार प्रकार के वाचिक पाप माने गये हैं।
3. अपनी कमाई को छोंडकर दूसरे के धन को पाने की लालच करना, मन से धर्मी व्यक्ति, परिवार, दोस्त या पत्नी के अनिष्ट के बारे मे सोचना, दूसरों को मारने को सोचना या अपने मरने से डरना ये तीन प्रकार के मान्सिक पाप माने गये हैं।
ये तीनो प्रकार के शारीरिक, मान्सिक और वाचिक पापों मे से किसी एक भी पाप से व्यक्ति का संबन्ध अगर जुडा हो तो उस व्यक्ति के द्वारा किये यज्ञ और पूजा-पाठ का तब तक कोई फल नही मिलता जब तक वो इन पाप कर्मों पूरी तरह से त्याग न दे। यदि कोई व्यक्ति इन तीनो प्रकार के पापों मे जुडा है और नही छोंडना चाहता तो उसे असुर ही मानना चाहिये।
यदि पाप कर्मो को व्यक्ति छोंड दे तो प्रायश्चित कर्मों के द्वारा मान्सिक पाप 28 दिन में, वाचिक पाप 12 महीने मे और शारीरिक पाप 12 साल में दूर होता है।
इसके अतिरिक्त ब्राह्मणों और संतो के प्रति दोष दृष्टि रखने और अधर्म कर्म मे लगे व्यक्ति को विष्णु पूजा का फल नही मिलता।
अगर कोई व्यक्ति अपनी धर्म पत्नी के प्रति दोष दृष्टि रखता है और उसे कष्ट देता है तो उसे लक्ष्मी पूजा का कोई फल नही मिलता।
कोई व्यक्ति स्त्रियों के प्रति दोष दृष्टि रखता है और अपनी धर्म पत्नी को प्रताडित करता हो तो ऐसे व्यक्ति के लिए दुर्गा अराधना उसके लिये काल बन जाती है। विनाश काले विपरीत बुद्धि के प्रभाव से पत्नी को घोर कष्ट देने वाले लोग दुर्गा अराधना में ही चले जाते हैं। जालन्धर अपनी पत्नी को घोर कष्ट देता था।जब उसने शक्ति की अराधना की भगवान शिव ने उसका नाश कर दिया। शिव और शक्ति दोनो मिलकर अर्धनारीश्वर बनते हैं। अपनी धर्म पत्नी को कष्ट देने का अर्थ ही अपने आधे शरीर की क्षति करना। मेरा मत है का दुर्गा अराधना करने वाले व्यक्ति किसी स्त्री को अपने पैर भी न छूने दे।रामकृष्ण परमहंस ने बहुत सी सिद्धियाँ अपनी पत्नी की पूजा करने से पा ली थी। तुम्हारी पत्नी ही लक्ष्मी और गौरी का रूप हैं और तुम्हारी बेटियाँ ही दुर्गा हैं।
मृत्यु और दुख से जो डरे रहते हैं उन्हे भगवान शिव की पूजा का कोई फल नही मिलता।
उत्तम कर्म करने से मन और आत्मा पवित्रता का अनुभव करते हैं, उनका ही संबन्ध भगवान से जुड सकता है।
द्वारा
लवलेश गौतम
1. बिना दिये हुए किसी की वस्तु ले लेना, हिंसा करना और अपनी धर्म पत्नी के अतिरिक्त किसी दूसरी के साथ संबन्ध बनाना। ये तीन प्रकार के शारीरिक पाप माने गये हैं।
2. कडवे वचन बोलकर धर्म में लगे व्यक्ति, परिवार, दोस्त या धर्म पत्नी के हृदय को कष्ट पहुँचाना, चुगली करना, अनाप- शनाप बातें करना ये चार प्रकार के वाचिक पाप माने गये हैं।
3. अपनी कमाई को छोंडकर दूसरे के धन को पाने की लालच करना, मन से धर्मी व्यक्ति, परिवार, दोस्त या पत्नी के अनिष्ट के बारे मे सोचना, दूसरों को मारने को सोचना या अपने मरने से डरना ये तीन प्रकार के मान्सिक पाप माने गये हैं।
ये तीनो प्रकार के शारीरिक, मान्सिक और वाचिक पापों मे से किसी एक भी पाप से व्यक्ति का संबन्ध अगर जुडा हो तो उस व्यक्ति के द्वारा किये यज्ञ और पूजा-पाठ का तब तक कोई फल नही मिलता जब तक वो इन पाप कर्मों पूरी तरह से त्याग न दे। यदि कोई व्यक्ति इन तीनो प्रकार के पापों मे जुडा है और नही छोंडना चाहता तो उसे असुर ही मानना चाहिये।
यदि पाप कर्मो को व्यक्ति छोंड दे तो प्रायश्चित कर्मों के द्वारा मान्सिक पाप 28 दिन में, वाचिक पाप 12 महीने मे और शारीरिक पाप 12 साल में दूर होता है।
इसके अतिरिक्त ब्राह्मणों और संतो के प्रति दोष दृष्टि रखने और अधर्म कर्म मे लगे व्यक्ति को विष्णु पूजा का फल नही मिलता।
अगर कोई व्यक्ति अपनी धर्म पत्नी के प्रति दोष दृष्टि रखता है और उसे कष्ट देता है तो उसे लक्ष्मी पूजा का कोई फल नही मिलता।
कोई व्यक्ति स्त्रियों के प्रति दोष दृष्टि रखता है और अपनी धर्म पत्नी को प्रताडित करता हो तो ऐसे व्यक्ति के लिए दुर्गा अराधना उसके लिये काल बन जाती है। विनाश काले विपरीत बुद्धि के प्रभाव से पत्नी को घोर कष्ट देने वाले लोग दुर्गा अराधना में ही चले जाते हैं। जालन्धर अपनी पत्नी को घोर कष्ट देता था।जब उसने शक्ति की अराधना की भगवान शिव ने उसका नाश कर दिया। शिव और शक्ति दोनो मिलकर अर्धनारीश्वर बनते हैं। अपनी धर्म पत्नी को कष्ट देने का अर्थ ही अपने आधे शरीर की क्षति करना। मेरा मत है का दुर्गा अराधना करने वाले व्यक्ति किसी स्त्री को अपने पैर भी न छूने दे।रामकृष्ण परमहंस ने बहुत सी सिद्धियाँ अपनी पत्नी की पूजा करने से पा ली थी। तुम्हारी पत्नी ही लक्ष्मी और गौरी का रूप हैं और तुम्हारी बेटियाँ ही दुर्गा हैं।
मृत्यु और दुख से जो डरे रहते हैं उन्हे भगवान शिव की पूजा का कोई फल नही मिलता।
उत्तम कर्म करने से मन और आत्मा पवित्रता का अनुभव करते हैं, उनका ही संबन्ध भगवान से जुड सकता है।
द्वारा
लवलेश गौतम
No comments:
Post a Comment